या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
आचार्य पंडित शरद चद्र मिश्र के अनुसार ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा 30 जनवरी दिन गुरूवार को की जाएगी। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 35 मिनट पर और पंचमी तिथि का मान दिन में 10 बजकर 27 मिनट, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र दिन में 12 बजकर 51 मिनट पश्चात रेवती नक्षत्रए सिद्ध योग सम्पूर्ण दिन और रात्रिशेष 3 बजकर 15 मिनट तथा छत्र नामक महाऔदायिक योग भी है।
नवीं शताब्दी में मिलता है कश्मीर में बसन्तोत्सव मनाने का उल्लेख वात्सायन के 'कामसूत्र' इस महोत्सव का नाम 'सुवसन्तक' पड़ा है। जब बसन्त ऋतु की अगवानी करने के लिए स्त्री और पुरुष नृत्य गीत करती थीं। भास रचित 'चारूदत्त' नाटक में इसी प्रकार के एक पर्व का नाम 'कामदेवानुयान' पड़ा है। नाटक में बताया गया है कि कामदेव का चित्र लेकर बाजे गाजे के साथ नागरिकों का भारी जुलूस निकाला जाता था। नवीं शताब्दी में कश्मीर में बसन्तोत्सव सार्वजनिक रूप से मनाने का उल्लेख मिलता है। जैसों के उत्तर पुराण मे एक जगह उल्लेख है कि बसन्त काल में लोग झूले झूलने का आनन्द लेते थे। इसी प्रकार जैन 'हरिवंश' का कहना है कि लोग झूलते समय हिंडोला राग अलापने थे। राजशेखर की 'काव्य मीमांसा' में भी बसन्तोत्सव की चर्चा हुई है।
पुराण समुच्चय के अनुसार जिस दिन पूर्वाह्न में पंचमी हो, वही दिन बसन्त पंचमी के लिए मान्य दिन है। यह ऋतुराज बसन्त के आरम्भ का दिन है। प्राचीन काल से ही इस महोत्सव को अपूर्व उत्साह से मनाया जाता रहा है। आरम्भ में यह विशुद्ध ऋतु सम्बन्धी महोत्सव था, किन्तु बाद में इसके साथ कुछ धार्मिक कथाएं जोड़ दी गई हैं। बसन्त पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है। इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। सरस्वती पांच प्रकृतियों में एक हैं।
- गणेश जननी दुर्गा राधा लक्ष्मीः सरस्वती।
- सावित्री च सृष्टिविधौ पंच प्रकृतयस्त्विमाः।।
इस प्रकार सरस्वती देवी वाग्धिष्ठात्री के साथ सृष्टि के कारण भी कही गयी हैं।
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