पौष पूर्णिमा पर जानें कल्पवास और इसके संकल्प


  • कल्पवासी 21 नियमों को निष्ठा के साथ पालन कर व्रत, संकल्प पूरा करेंगे

  • भोर में जागना, दो बार स्नान, जमीन पर सोना, ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करना, झूठ न बोलना, गृहस्थ की चिंता से मुक्त रहना, नियमित भजन, सत्संग व रामायण का पाठ करना, दूसरों की निंदा से दूर रहना। स्वयं या पत्नी का बनाया भोजन करना जैसे 21 नियमों का पालन करना है


'गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला' के आवाह्न के साथ संगम तट पर श्रद्धालुओं ने एक माह के लिए कल्पवास शुरू कर दिया है। माघ मास के पहले स्नान पर्व पौष पूर्णिमा से शुरू हुआ और कल्पवास माघी पूर्णिमा को समाप्त होगा। संगम की रेती पर कल्पवासी संयमित जीवन के साथ जप, तप में लीन हो गए हैं।'



प्रयागराज। कायाकल्प के निमित्त शिविरों में कल्पवासियों ने भोर में गंगा स्नान, ध्यान करके विधिविधान से कल्पवास का संकल्प लिया। कल्पवास के 21 नियमों को निष्ठा के साथ पालन से ही व्रत, संकल्प पूरा करेंगे। त्रिवेणी के पावन तट पर यह तपस्या जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी।


कल्पवासियों की पहले दिन से ही दिनचर्या बदल गई। संकल्प पूरा करने के लिए भोर में जागना, दिन में दो बार स्नान, जमीन पर सोना, ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करना, झूठ न बोलना, गृहस्थ की चिंता से मुक्त रहना, नियमित भजन, सत्संग व रामायण का पाठ करना, दूसरों की निंदा से दूर रहना शुरू किया गया है। खुद या पत्नी का बनाया भोजन करना शुरू किया गया है।


कई राज्यों से आए कल्पवासी
संगम की रेती पर कल्पवास के लिए प्रदेश के फैजाबाद, जौनपुर, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, फतेहपुर, कौशाम्बी, प्रतापगढ़ के अलावा गंगापार-यमुनापार से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आए हैं। साथ ही मध्य प्रदेशए छत्तीसगढ़ए बिहार और राजस्थान के श्रद्धालु भी कल्पवास के लिए आए हैं।  


रोपा तुलसी का बिरवा
कल्पवासियों ने परंपरा के अनुसार अपने शिविर के सामने तुलसी का बिरवा रोपा और जौ बोया। साथ ही शालिग्राम की स्थापना करके विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया। कल्पवास के समापन पर जौ और तुलसी का बिरवा प्रसाद स्वरूप श्रद्धालु घर ले जाएंगे। 



विधिविधान से लिया कल्पवास का संकल्प
कल्पवास शुरू करने के पूर्व श्रद्धालुओं ने भोर में गंगा स्नान करके  पुरोहितों के आचार्यत्व में पूजन-अर्चन कर संकल्प लिया। शिविर में विष्णु सह्रसनामए राम रक्षा स्त्रोत पाठ, नारायण कवच, शालिग्राम की पूजा, शिव की पूजा और विधिविधान से रुद्राभिषेक पूजन किया। 



कल्पवास की अवधि
शास्त्रों में कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात मानी जाती है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तीन रात, एक माह, छह माह, छह वर्ष, 12 वर्ष व जीवन भर कल्पवास कर सकते हैं।


क्या है कल्पवास
कल्पवास शब्द में श्कल्पश् का अर्थ है युग और श्वास कर अर्थ है रहना। अर्थात किसी पवित्र भूमि में कठिनाई के साथ अनुरक्ति और विरक्ति दोनों भावनाओं से प्रेरित होकर निश्चित समय तक रहने को कल्पवास कहते हैं। 


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