आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र,
वाराणसी से प्रकाशित हृषिकेश पंचांग के अनुसार 25 नवम्बर दिन बुधवार को सूर्योदय 6 बजकर 41 मिनट पर और एकादशी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन और रात्रि शेष 6 बजकर 14 मिनट (26नवम्बर को 6-14 a-m-) तक। इस दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत रात्रि 8 बजकर 22 मिनट, पश्चात रेवती नक्षत्र है। इस दिन प्रबोधिनी एकादशी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु चार माह के शयन के अनन्तर आज जाग्रत होते हैं। यद्यपि भगवान सोते नही हैं, फिर भी भक्तों की मान्यता के अनुसार- "यथा देहे तथा देवे-" मान्यता के अनुसार चार माह शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीरशयन के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है कि भगवान ने आषाढ़ मास के शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर मे जाकर सो गये। वे चार मास तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी कारण इसका नाम "देवोत्थानी" या "प्रबोधिनी एकादशी" पड़ गया। इस दिन व्रत के रूप मे उपवास करने का विशेष महत्व है। पूर्ण उपवास न कर सके तो एक बार फलाहार करना चाहिए और नियम-संयम पूर्वक रहना चाहिए। एकादशी के दिन भगवन्नाम-जप-कीर्तन की बड़ी महिमा है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवत्प्रीति के लिए पूजा-पाठ, व्रत-उपवास आदि किया जाता है।
25 नवम्बर को प्रबोधिनी एकादशी का परम पुनीत पर्व
इस तिथि को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में भगवत्सम्बन्धी कीर्तन; वाद्य, नृत्य और पुराणों का वाचन करना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध, चन्दन,फल और अर्घ्य आदि से पूजन करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि तथा निम्न मन्त्रों से जगाने की प्रार्थना करें-
"उत्तिष्ष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्याग निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्टोद्धृत वसुन्धरे।
हिरण्याक्ष प्राणघातिन् त्रलोक्ये मंगलं कुरू।।"
इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पण करके निम्न मन्त्रों से प्रार्थना करें-
"इयं तु द्वादशी प्रबोधाय विनिर्मिता।।
त्वयैव व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन ।।"
तदन्तर प्रह्लाद, नारद, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करना चाहिए। प्रबोधिनी एकादशी को पारणा में रेवती नक्षत्र का अन्तिम तृतीयांश हो, तो उसे त्यागकर भोजन करना चाहिए।
इस दिन गन्ने के खेत में जाकर सिन्दूर, अक्षत आदि से उसकी पूजा की जाती है और फिर इसी दिन से प्रथम बार गन्ना काटकर चूसना आरम्भ किया जाता है।
माहात्म्य
एक इस व्रत के करने से व्रती को सहस्रों अश्वमेध और सैकड़ो राजसूर्य यज्ञों का फल प्राप्त होता है। व्रत के प्रभाव से उसे वीर, पराक्रमी और यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है। यह व्रत पापनाशक,पुण्यवर्धक तथा ज्ञानियों को मुक्तिदायकसिद्ध होता है यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्नता देने वाला और विष्णु धाम की प्राप्ति कराने वाला है।इस व्रत को करने से समस्त तीर्थों का घर मे निवास हो जाता है।
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