भैरोष्टमी पर विशेष :
अघोरी करते हैं शिव और श्मशान साधना
आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र,
तन्त्र साधना में शान्तिकर्म, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण- नामक छः फट् कर्म होते हैं। इसके अतिरिक्त और प्रयोगों का वर्णन मिलता है। उन सभी को करने के लिए अन्य कई प्रयोग किये जाते हैं। अघोरी लोग इसके लिए शिव साधना और श्मशान साधना करते हैं। बहुत से लोग भैरव साधना, नाग साधना, पैशाचनी साधना, यक्षिणी साधना या रूद्र साधना करते हैं। अकाल मृत्यु से बचाने वाली और धन-सम्पत्ति प्रदान करने वाली है भैरव साधना। तन्त्र साधना में भैरव के आठ रूप अधिक लोकप्रिय है। ये हैं- असितांग भैरव, रूरू भैरव, भीषण भैरव, चण्ड भैरव, क्रधोन्मत्त भैरव, भयंकर भैरव, कपाल भैरव और संहार भैरव। शंकराचार्य ने "प्रपंचसार तन्त्र" में आठ भैरवों के नाम लिखे हैं। इसके अलावा "सप्तविंशति रहस्य" में सात भैरवों के नाम है। इसी में तीन बटुक भैरवों का भी उल्लेख हैं। रूद्रयामल तन्त्र में 64 भैरवों कै नामों का उल्लेख है। हलाॅकि प्रमुख रूप से काल भैरव और बटुक भैरव की ही साधना प्रचलन मे है। इनका ही ज्यादा महत्व माना जाता है। आगम तन्त्र मे 10 बटुकों का विवरण है। भैरव का सबसे सौम्य रूप बटुक भैरव और उग्र रूप कालभैरव हैं। काल भैरव मृत्यु के देवता हैं। तन्त्राचार्यो का कथन है कि वेदों मे जिस जिस परम पुरूष का चित्रण रूद्र रूप मे हुआ है, वह तन्त्र शास्त्र के ग्रन्थों में, उस स्वरूप का वर्णन भैरव के नाम से किया गया है। इनके भय से सूर्य और अग्नि तपते हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव जी का अपना स्थान है। तान्त्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति, उसका विराट रूप प्रतिबिम्बित काली हैं। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप मे जाने जाते हैं, वही ये दुर्गा के अनुयायी भी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ते है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण, उपासना मे इसका महत्व है। साथ ही भैरव रात के देवता माने गये हैं और इनकी आराधना का समय रात्रि मध्य में 12 बजे से 3 बजे के मध्य माना जाता है।
काल भैरव की जयन्ती 8 दिसंबर 2020 मंगलवार को है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्याह्न के समय भगवान भैरव की उत्पत्ति हुई थी। वाराणसी से प्रकाशित पंचांग के अनुसार सूर्योदय 6 बजकर 45 मिनट पर और अष्टमी तिथि 8 दिसम्बर को दिन मे एक बजकर 34 मिनट तक भैरवाष्टमी के लिए मान्य रहेगा।
पुराणों के अनुसार भैरव शिव जी के दूसरे रूप के रूप मे प्रतिबिम्बित हैं। इसी दिन शिव जी के प्रिय गण भैरव जी का जन्म मध्याह्न मे हुआ था। भैरव के भय से काल भी भयभीत रहता है, इसीलिए इन्हे कालभैरव के नाम से जाना जाता है। वैसे तो भारत के अनेक भागों मे भैरव जी के मन्दिर बने हैं परन्तु सर्वाधिक मन्दिर वाराणसी मे हैं। जगत प्रसिद्ध काल भैरव मन्दिर काशी मे ही है और इनकी मान्यता काशी के कोतवाल के रूप मे है।इस दिन व्रत और पूजन होता है।भैरव अष्टमी के व्रत को गणेश, विष्णु, यम, चन्द्रमा और कुबेर आदि ने किया था।
इसी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु लक्ष्मी जी के पति बने। इन दिन का व्रतार्चन सभी कामनाओं को देने वाला सर्वश्रेष्ठ व्रत है। जो इस दिन व्रतार्चन करता है, वह सभी पापों से छूट जाता है। उसे सब ऐश्वर्य मिल जाते। ऐसी मान्यता है कि भैरवाष्टमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के उपरान्त, यदि काल भैरव की उपासना की जाए, तो उससे उपासक के वर्ष भर के समस्त विघ्न टल जाते हैं। उसे लौकिक और पारलौकिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यहाॅ तक कि आय मे वृद्धि के साथ क्रमशः धन-धान्य मे भी समृद्धि होती है।काल भैरव के मन्दिर मे चढ़ाये हुए काले धागे को जो मनुष्य अपने गले या बाजू में बांधता, उसे भूत -प्रेत तथा जादू टोने का प्रभाव नही पड़ता है।
पूजन विधि-विधान
यह व्रत मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। इस दिन उपवास रखकर संकल्प करें। प्रातःकाल स्नान के व्रत का संकल्प करें। तर्पण करके प्रत्येक प्रहर में काल भैरव और ईशान नाम के शिव शंकर भोलेनाथ का विधिपूर्वक पूजन करके तीन बार अर्घ्य प्रदान करें। आधी रात मे धूमधाम से शंख, घंट- घड़ियाल आदि बजाकर कालभैरव की आरती करें।
पुनः पूर्ण रात्रि जागरण कर शिव जी और कालभैरव की कथा श्रवण करें। जैसा कि विदित है कि भैरव जी का वाहन कुत्ते है, अतः कुत्ते की पूजा भी की जाती है। कुछ श्रद्धालु लोग कुत्तो को दूध पिलाते और मिष्ठान्न भी अर्पण करते है।
स्मरण करने से रोगों से मुक्ति
भैरव के नाम जप से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे सन्तान को लम्बी आयु प्रदान करते हैं। यदि घर में प्रतिदिन दोष हो, तो काल भैरवाष्टमी के दिन या शनिवार या मंगलवार अथवा किसी अष्टमी के दिन भैरव स्त्रोत्र का पाठ करने से सभी दोषों का उपशमन हो जाता है। जन्म कुण्डली मे यदि व्यक्ति मंगल ग्रह के दोषों से ग्रसित है तो भैरव जी की पूजा से दोष समाप्त हो जाता है। राहु-केतु के दोषों के लिए भी इनका पूजन श्रेयष्कर माना जाता है। भैरव जी पूजा मे काला उड़द और उड़द से बना मिष्ठान्न, इमरती, दही, बड़ा, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है। इससे भैरव प्रसन्न हो जाते हैं। भैरव की पूजा करने से परिवार मे सुख-समृद्धि के साथ स्वास्थ्य की रक्षा होती है।
भैरव तन्त्रोक्त पाठ, भैरव कवच, बटुकों भैरव, स्तोत्र का पाठ और भैरव जी के मन्त्र का जप करके अपनी समस्याओ का निदान किया जा सकता है। खासतौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव जी के दर्शन करने से अशुभ कर्मो से मुक्ति मिलती है। भारतवर्ष मे अनेकों परिवारों में कुल देवता के रूप मे भैरव की पूजा की जाती है। लोग काली और भैरव जी से भयभीत रहते हैं परन्तु सच तो यह है कि इनकी उपासना से सम्पूर्ण दुःख दूर हो जाते हैं। ये सुखी जीवन प्रदान करने के लिए तैयार रहते हैं। बशर्ते आप सही मार्ग का अनुगमन करें। भैरव उपासना शिघ्रातिशिघ्र फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को भी समाप्त करता है।
प्रायः हिन्दू धर्म सम्बन्धित समस्त अर्चन और अनुष्ठानों में भैरव जी से अनुज्ञा लेकर ही कार्य किया जाता है।
भैरव की उत्पत्ति का प्रसंग
विश्व का परम तत्त्व कौन है। इस विषय पर एक बार ब्रह्मा और भगवान विष्णु मे विवाद उठ खड़ा हुआ। दोनो ही अपने को विश्व का नियन्ता और परम तत्त्व मानने पर अड़ गये। विवाद बढ़ता देखकर इसका निर्णय महर्षियों को सौंपा गया। उन्होने कहा कि भगवान शिव एक व्यक्त सत्ता हैं एवं ब्रह्मा और विष्णु दोनो ही उसी विभूति से निर्मित हैं। यह बात सुनकर भगवान विष्णु ने तो सहर्ष स्वीकार कर ली, लेकिन ब्रह्मा जी अपने को सृष्टि का नियन्ता मानकर अवज्ञा जारी रखे। यह बात भगवान शिव को स्वीकार नही हुआ। कहा जाता है कि तत्काल ही उन्होंने भैरव का रूप धारण कर ब्रह्मा का अहंकार नष्ट कर दिया। संयोग से उस दिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी, अतः इस दिन को भैरव अष्टमी व्रत के रुप मे मनाया जाने लगा। उल्लेखनीय है की भैरवाष्टमी काल का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय से निवारण हेतु कालभैरव की शरण मे जाने की सलाह धर्मशास्त्र देते हैं। विश्वास किया जाता है कि कालभैरव सदा ही सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वाले, धर्मसाधक, शान्तप्रकृति, क्षमाशील, सहिष्षु व्यक्तियों की रक्षा करते हैं। इस विश्वास के साथ यह व्रत किया जाता है।
-आचार्य पं शरदचन्द मिश्र अध्यक्ष, रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी गोरखपुर।
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