‘‘हर खांसी वायरल या कोविड का लक्षण नहीं, हो सकती है टीबी’’

दो सप्ताह तक खांसी आए और शाम को पसीने के साथ बुखार हो तो कराएं टीबी की जांच

समय से टीबी जांच एवं उचित उपचार न होने पर एमडीआर व एक्सडीआर टी0बी0 में हो जाती है परिवर्तित 

ऐसी बीमारी का इलाज महंगा और इलाज की अवधि लम्बी हो जाती है



गोरखपुर, 20 फरवरी 2021। खांसी एक ऐसा लक्षण है जो वायरल फीवर, कोविड और टीबी तीनों में पाया जाता है। खांसी आने पर अमूमन लोग दवा की दुकानों से सीरप या दवाएं ले लेते हैं, जो कि उचित नहीं है। चिकित्सक को खांसी के साथ संपूर्ण लक्षण न बताने पर वहां से भी बुखार-खांसी की दवा दे दी जाती है। यह भी ठीक नहीं है। कोविड काल में खांसी को कोविड समझ कर डरने की घटनाएं भी सामान्य रही हैं। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि हर खांसी वायरल या कोविड नहीं होती है। अगर दो सप्ताह तक खांसी आए और शाम को पसीने के साथ बुखार हो तो टीबी जांच अवश्य करवानी चाहिए। यह कहना है जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. रामेश्वर मिश्रा का। उन्होंने बताया कि समय से टीबी की जांच न होने पर और खांसी को सिर्फ बुखार का हिस्सा समझ कर दवा करवाने पर, अगर मरीज मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) टी0बी0 मरीज हो जाए तो उसके इलाज में काम आने वाली द्वितीय पंक्ति की दवाएं देनी पडती है। तुलनात्मक रूप से प्रथम श्रेणी के दवाओं की अपेक्षा ये दवाये कमजोर होती हैं एवं शरीर पर दुस्प्रभाव भी ज्यादा हाता है।

 

डॉ. मिश्रा का कहना है कि सामान्य खांसी में भी एमडीआर मरीजों को दी जाने वाली द्वितीय पंक्ति की कुछ दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे में अगर सामान्य खांसी समझ कर टीबी मरीज को खांसी-बुखार को दवा दी जाए तो टीबी के मरीज में इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित होने लगता है। ऐसे में जब टीबी की देर से पहचान होती है और इसलिए खांसी आए तो अन्य लक्षणों को ध्यान में रखते हुए टीबी की जांच अवश्य करवानी चाहिए। उन्होंने बताया कि अगर दो सप्ताह तक लगातार खांसी आ रही हो और तेजी से वजन घट रहा हो। भूख न लगती हो। सीने में दर्द हो। शाम को हल्के बुखार के साथ पसीना आए तो टीबी की जांच अवश्य करवानी चाहिए। 


48 केंद्रों पर होती है जांच

उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. विराट स्वरूप श्रीवास्तव ने बताया कि जिले में सीएचसी, पीएचसी और अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (एपीएचसी) मिला कर कुल 48 केंद्रों पर टीबी के माइक्रोस्कोपिक जांच की सुविधा उपलब्ध है। अगर किसी में टीबी के लक्षण दिखे तो वह आशा कार्यकर्ता और एएनएम की मदद से नजदीकी जांच केंद्र पर जांच करवा सकता है। माइक्रोस्पोकोपिक और एक्स-रे जांच के बाद जिन लोगों में टीबी की पुष्टि हो जाती है उनकी सीबीनॉट और ट्रूनॉट जांच करवाई जाती है और देखा जाता है कि मरीज एमडीआर तो नहीं है। सीबीनॉट जांच की निःशुल्क सुविधा बीआरडी मेडिकल कालेज, सीएचसी बड़हलगंज और जिला क्षय रोग केंद्र पर उपलब्ध है। ट्रूनॉट जांच की सुविधा पिपरौली, खोराबार, पिपराईच, भटहट, कैंपियरगंज, बेलघाट और जिला क्षय रोग केंद्र पर मौजूद है। जिन मरीजों में टीबी की पुष्टि हो जाती है, उनके मधुमेह स्तर और एचआईवी की जांच भी आवश्यक तौर पर करवाई जाती है।

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