जानिए क्या है पीपी आईयूसीडी, जिसे महिलाएं कर रही हैं इतना पसंद

परिवार नियोजन स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकताओं में शामिल है, जिसके लिए समय-समय पर तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों को लाभार्थियों तक पहुंचाने की हर संभव कोशिश रहती है। इसमें भी दो बच्चों के बीच अंतर रखने के लिए कई तरह के अस्थायी गर्भ निरोधक साधन लाभार्थियों की पसंद के मुताबिक उपलब्ध हैं।



इसमें एक प्रमुख साधन है पोस्ट पार्टम इंट्रायूटेराइन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस (पीपी आईयूसीडी) जो कि प्रसव के 48 घंटे के अंदर लगता है और जब दूसरे बच्चे का विचार बने तो महिलाएं इसको आसानी से निकलवा भी सकती हैं। अनचाहे गर्भ से लंबे समय तक मुक्ति चाहने वाली महिलाओं के बीच इस कोरोना काल (कोविड-19) में भी गोरखपुर जिले में इसको पसंद किया गया।
मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी का कहना है कि लाभार्थियों को परिवार कल्याण के बारे में जागरूक करने में आशा कार्यकर्ता और एएनएम की प्रमुख भूमिका रहती है। इस वित्तीय वर्ष 2020-21 की शुरुआत ही कोरोना के चलते लॉकडाउन से हुई, फिर भी जिले की महिलाओं ने संस्थागत प्रसव के तुरंत बाद इस विधि को अपनाने में खास दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने बताया कि जिले में अप्रैल से जून माह के बीच कुल 6767 संस्थागत प्रसव हुए जिसके सापेक्ष 1401 महिलाओं ने यह अस्थायी साधन अपनाया।



राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश की महाप्रबंधक-परिवार नियोजन डॉ. अल्पना का कहना है कि लोगों को लगातार जागरूक करने का प्रयास रहता है कि 'छोटा परिवार-सुखी परिवार' के नारे को अपने जीवन में उतारने में ही सभी की भलाई है। इसके लिए उनके सामने 'बास्केट ऑफ च्वाइस' मौजूद है, उनके फायदे के बारे में भी सभी को अच्छी तरह से अवगत करा दिया गया है।


मातृ एवं शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर अवश्य रखना चाहिए। उससे पहले दूसरे गर्भ को धारण करने योग्य महिला का शरीर नहीं बन पाता और पहले बच्चे के उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह बहुत जरूरी होता है। बताया कि इसके लिए लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन तक उचित गर्भ निरोधक सामग्री पहुंचाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को भी दक्ष करने का प्रयास किया जाता है।


उनका कहना है कि परिवार नियोजन में स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रदेश के सभी जिलों में उत्तर प्रदेश तकनीकी सहयोग इकाई (यूपी टीएसयू) मदद कर रही है, जिसका प्रयास सराहनीय है।
पीपी आईयूसीडी को जानिए



अपर मुख्य चिकित्साधिकारी आरसीएच डॉ. नंद कुमार ने बताया कि प्रसव के 48 घंटे के अंदर यानि अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले महिला आईयूसीडी लगवा सकती है। एक बार लगने के बाद इसका असर पांच से दस साल तक रहता है।


बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने की यह लंबी अवधि की विधि बहुत ही सुरक्षित और आसान भी है। यह गर्भाशय के भीतर लगने वाला छोटा उपकरण है जो कि दो प्रकार का होता है- पहला कॉपर आईयूसीडी 380 ए- जिसका असर दस वर्षों तक रहता है, दूसरा है- कॉपर आईयूसीडी 375 जिसका असर पांच वर्षों तक रहता है।


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