मुँशी प्रेमचंद की जीवनी और लेखनी में समानताये पर सोशल मीडिया के माध्यम से हुई परिचर्चा


गोरखपुर। कलम के सिपाही कथा सम्राट मुँशी प्रेमचंद के जयंती के पूर्व जागरूक गोरखपुर (जागो) संस्था ने डिजिटल ई-संवाद के तहत प्रेमचंद से जुड़े (मुँशी प्रेमचंद की जीवनी और लेखनी में समानताये व अंतर) विषयों पर सोशल मीडिया के माध्यम से परिचर्चा की गई। नाट्यकर्मी मुमताज खान ने प्रेमचंद के जीवन और संघर्षो को रेखांकित करते हुए बताया कि उनकी नौकरी, सामाजिक और साहित्यिक जीवन का बहुत महत्वपूर्ण समय गोरखपुर में बीते। उन्होने प्रेमचंद की व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रतिरोध का प्रतिबिम्ब बताते हुए उनकी कृति – ‘हज्ज-ए-अकबर’ के कथानक को बताते हुए संदेश दिया की सबसे बडा धर्म मानवता है। प्रेमचंद के नाटक उनके उपन्यास और कहानियो के बीच कही गुम हो गये सवाल का जवाब देते हुए उन्होने कहा की उस काल के नाटकार उनकी कहानियो और उपन्यास से ज्यादा प्रभावित रहे इस वजह से उनके नाटको की बजाय उनकी कहानियो पर ज्यादा नाटक हुए।   


प्रेमचंद अध्येता विजय कुमार शुक्ल ने प्रेमचंद के साहित्य की उपलब्धि आम आदमी नायक के रूप में स्थापित होना बताया। उन्होने कफ़न कहानी के माध्यम से खत्म होती मानवता पर चर्चा की। उन्होने होरी के माध्यम से किसानो की दुर्द्शा पर बात करते हुए कहा की आज भी उनकी स्थिति वैसी ही है। प्रेमचंद ने साम्प्रदायिकता का एक तरफा विरोध नही किया बल्की मुखरता से सभी प्रकार की साम्प्रदायिकता को धिक्कारा लेकिन आज यह खांचो में बंट गया है पर अपनी बात रखते हुए कहा की वास्तव में प्रेमचंद ने अपनी बाते बिना लाग-लपेट के रखा और हमें उसे आज भी उसी तरह देखना ही होगा । 


संस्कृतिकर्मी रोशन एहतेशाम ने कहा की प्रेमचंद के साहित्य से हमें आदर्शो और संघर्षो के अलग-अलग रंग मिलेंगे। उन्होने उनके जीवन की चर्चा करते हुए कहा की प्रेमचंद साहित्य उनकी-हमारी ‘जिंदगी की किताब’ ही है। स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होने अपने साहित्य से एक जान डाल दिया। उन्होने स्त्री, किसान, वंचितो से लेकर सभी वर्ग को अपने कथानक में शामिल किया और उनके मुद्दो को बहुत ही बेबाकी से रखा। कथा सम्राट से लेकर कलम के सिपाही तक के सफर पर अपने विचार रखते हुए कहा की उनके विचार समाज के लिये लाईट हाउस है। 


 


युवा रंकर्मी एनएसडी प्रशिक्षित दिक्षा तिवारी ने किसी भी काहनी के लिये लेखक का उसे अनुभव करने को आवश्यक कहा। दीक्षा ने कहा की उनके कथानक में उनके जीवन के रंगो की झलक मिलती है। प्रेमचंद के साहित्य को बहुत ही सहज बताते हुए कहा की इसी वजह से उनके साहित्य से कोई भी गैर साहित्यकार आम आदमी भी जुड जाता है उसे यह लगता है यह तो उसी की कहानी है। 


नाट्य लेख़क आनंद पांडेय ने मुँशी प्रेमचंद को आज की जरूरत बताते हुए उनके जीवनी और उपन्यासों पर अनेक बिंदु प्रस्तुत किये, साथ है सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से दर्शकों ने अपने अपने सवालों को वक्ताओं से पूछा और जवाब भी लेना चाहा, ऐसे डिजिटल ई संवाद परिचर्चा कार्यक्रम लगातार होने की शुभकामना भी दी।


साथ ही सभी वक्ताओ ने प्रेमचंद से प्रेरित होते हुए साहित्यकारो से अपनी बातो को मुखरता और बिना लाग लपेट के कहने की अपील की।


कार्यक्रम का संचालन अमित सिंह पटेल ने किया व आयोजन जागरूक गोरखपुर (जागो) संस्था ने की..


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