ओपीडी के पांच फीसदी मरीजों की टीबी जांच करवाएं : डॉ. रामेश्वर

अपील

•100 में से तीन से पांच मरीजों में होते हैं टीबी के लक्षण

•समय से इलाज शुरू कर देने से ठीक हो जाती है टीबी



गोरखपुर, 09 मार्च 2021। जिले के सभी चिकित्सक अगर अपनी हर ओपीडी से क्षय रोग के संभावित लक्षणों वाले पांच प्रतिशत मरीजों को टीबी की जांच के लिए रेफर कर दें तो इस बीमारी के उन्मूलन में काफी मदद मिलेगी। साथ ही यह बीमारी मॉस ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) का रूप लेने से बच जाएगी। यह अपील है जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. रामेश्वर मिश्रा की। उन्होंने कहा कि इसकी निःशुल्क जांच सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में होती है।

जिला क्षय रोग अधिकारी का कहना है कि सरकारी क्षेत्र में दिशा-निर्देश है कि ओपीडी के तीन से पांच फीसदी मरीजों की टीबी जांच करवाई जाए। ऐसा देखा गया है कि प्रत्येक 100 में से न्यूनतम तीन और अधिकतम पांच मरीज खांसी के ही होते हैं। दो सप्ताह या अधिक समय तक खांसी आना, खांसी के साथ बलगम आना, बलगम में कभी-कभी खून आना, सीने में दर्द होना, शाम को हल्का बुखार आना, वजन कम होना और भूख न लगना टीबी के सामान्य लक्षण हैं। ऐसे में अगर खांसी का मरीज आता है तो उसके सभी लक्षणों की गहनता से पड़ताल होनी चाहिए और संभावित टीबी मरीज दिखे तो टीबी जांच अवश्य करवाई जानी चाहिए।

डॉ. मिश्रा ने बताया कि टीबी के मरीज की बिना जांच करवाए दवा चलाना अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए छह महीने की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह अगर टीबी मरीज की पहचान हो जाए तो उसका नोटिफिकेशन स्वास्थ्य विभाग को किया जाना अनिवार्य है, ऐसा न करने पर भी कार्यवाही का प्रावधान है। 


ठीक हो जाती है टीबी

जिला क्षय रोग केंद्र में टीबी की जांच व इलाज से जुड़े चिकित्सक व उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. विराट स्वरूप श्रीवास्तव का कहना है कि अगर टीबी की समय से पहचान हो जाए और अतिशीघ्र इलाज शुरू कर दिया जाए तो बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है। लेकिन समय से इलाज शुरू न होने और बीच में इलाज छोड़ देने से बीमारी दवाओं के प्रति रेसिस्टेंट कायम कर लेती है और इलाज कठिन हो जाता है। 


चिकित्सक की भूमिका अहम

टीबी के उन्मूलन में सरकारी और निजी क्षेत्र के चिकित्सकों की एक समान महत्वपूर्ण भूमिका है। टीबी मरीज की समय से पहचान हो जाने से उसका इलाज तो आसान हो ही जाता है, बीमारी का प्रसार थम जाता है और समाज की भी सुरक्षा होती है। इसलिए सभी चिकित्सक अपने ओपीडी में ऐसे मरीजों की पहचान कर जांच अवश्य करवाएं।

डॉ. सुधाकर पांडेय, मुख्य चिकित्सा अधिकारी

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