क्लेशों को दूर करती पौराणिक कथा : श्रीराधाकृष्णजी




गोरखपुर। भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार की पावन तपोभूमि गीता वाटिका प्रांगण में श्रीभाईजी की 50 वीं तिरोधान तिथि (पुण्यतिथि) के उपलक्ष्य में आयोजित श्री राम कथा के द्वितीय दिवस 2 अप्रैल को व्यासपीठ से कथाप्रसंग का विस्तार करते हुए जोधपुर से पधारे कथाव्यास गोवत्स श्रीराधाकृष्णजी महाराज ने श्री भाईजी का एक पद सुनाया और उसकी व्याख्या की।

*राधे जू मोपै आज ढरौ ।*

*निज चाकर चाकर चाकर की सेवा दान करो ।।*

यहां श्रीराधा जी से उनके चाकर के चाकर के चाकर की सेवा मांगी गई है।

भगवान शंकर का भी सबसे बड़ा सुख भगवत् कथा ही है। कथा जैसा सुख संसार में कहीं नहीं है। जो कुंडलिनी योग की कठिन साधना से जागृत होती है, वह भगवत् कथा श्रवण से भी जागृत हो जाती है। कथा बहुत बड़ी जड़ी है। कथा बहुत बड़ा समाधान है। कथा सारे क्लेशों को दूर करती है।

भगवान शंकर सती को साथ लेकर कथा श्रवण के लिए अगस्त्य ऋषि के पास गए। अगस्त्य ने भगवान शंकर की पूजा की । इससे सती के मन में संदेह उत्पन्न हुआ , जिसके कारण उनका कथा में मन नहीं लगा।

कथा में ठाकुर जी को पहचानने का क्लू / हिन्ट  मिलता है। सती ने कथा ठीक से नहीं श्रवण किया। इसलिए सीता की खोज में रोते हुए राम को पहचान नहीं सकीं। कोई अपना रूप भले ही बदल ले, पर स्वरूप अथवा स्वभाव नहीं बदला जा सकता।

राम ने उन्हें माता कह कर संबोधित किया और पूछा आप अकेले यहां क्यों विचरण कर रही हैं ? भगवान शंकर कहां हैं ? सती को इसके बाद चारों तरफ राम, लक्ष्मण , जानकी ही दिखाई देने लगे।

जिस प्रकार क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है उसी प्रकार सम्मान की भूख भी विवेक का नाश कर देती है।

पूर्वाह्न 10 बजे से श्रीभाईजी रचित पदों के संग्रह ग्रंथ  *पद रत्नाकर* के पदों का सस्वर गायन किया गया।


कथा 9 अप्रैल तक चलेगी । कथा का समय प्रतिदिन 3 से 7 बजे तक है ।


श्रीभाईजी की तिरोधान तिथि (पुण्यतिथि)  चैत्र कृष्ण दशमी तदनुसार 6 अप्रैल मंगलवार को है।

श्री भाई जी की पावन स्मृति में 4 अप्रैल रविवार को प्रातः 7 बजे गीता वाटिका से  *नगर संकीर्तन यात्रा*  निकाली जाएगी।

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