मातृकुल की देवियों की उपासना का परम पवित्र तिथि है सीता नवमी

 

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

गोरखपुर। वैशाख शुक्ल नवमी को सीता नवमी के रूप में जाना जाता है। वेसै शुक्ल पक्ष की सभी नवमी तिथि माॅ दुर्गा सहित सभी मातृकुल की देवियों की उपासना के लिए परम पवित्र तिथि है। वाराणसी से प्रकाशित पंचाङ्गो के अनुसार 20 मई को सूर्योदय 5 बजकर 21 मिनट पर और अष्टमी तिथि का मान प्रातः 6 बजकर 48 मिनट तक पश्चात नवमी है।इसी दिन माता सीता की उत्पत्ति मध्याह्न काल मे हुआ था और प्रातःकाल भगवती बगलामुखी की उत्पत्ति के कारण इस दिन सीता नवमी और बगलामुखी जयन्ती दोनो है। माॅ सीता भगवान श्रीरामचन्द्र की धर्मभार्या है और अपने त्याग और समर्पण के लिए पूजनीय है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

इस दिन प्रातः उठकर घर के मन्दिर की सफाई करें। देवी और देवताओ का गंगाजल से अभिषेक करें। सीता जी का ध्यान करें। यदि व्रत रख सकें तो उत्तम अन्यथा केवल पूजा ही सम्पन्न करें। माॅ सीता और श्रीरामचन्द्र, हनुमान एवं रामपरिवार की उपासना करें। श्रीराम और माॅ सीता जी को सात्विक वस्तुओं को नैवेद्य अर्पण करें। इससे स्वास्थ्य सहित सभी समस्याओ का समाधान मिलता है और व्रती को सभी मनोकामनाओ की प्राप्ति होती है।

माॅ भगवती की उत्पत्ति की कथा:

वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला राज्य मे कई वर्ष तक वर्षा न हुई। इससे मिथिला नरेश बहुत चिन्तित हो गये। इसके लिए ॠषि मनियो से विचार-विमर्श किये। मुनियो ने राजा जनक को हल चलाने की सलाह दी। उनके विमर्श के अनुसार जनक ने वैशाख शुक्ल नवमी को हल चलाया। इसी दौरान उनके हल से कोई वस्तु टकराई।यह देखकर राजा ने सेवादारों से उस स्थान की खुदाई कराई और उन्हे एक कलश प्राप्त हुआ, जिसमे एक कन्या थी। राजा जनक ने उसे पुत्री मानकर उसका पालन पोषण किया। उस समय हल को सीत कहा जाता था इसलिए राजा जनक ने उसका नाम सीता रखा। ऐसी मान्यता है कि जानकी नवमी के दिन सुहाग की वस्तुएं दान करने से व्रती को कन्यादान के समान फल प्राप्त होता है। ऐसे में इस दिन कुंकुम, चूड़ी, बिन्दिया इत्यादि का दान करे और माता जानकी को सोलह श्रंगार की वस्तुए अपिथ करें। यदि पुत्र प्राप्ति की आकांक्षा हो तो सीता स्त्रोत्र का पाठ भी करें।
आचार्य पं-शरदचन्द मिश्र -अध्यक्ष -रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसाइटी

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