महाशिवरात्रि व्रत के दिन शिव जी आराधना से समस्त पापों का उन्मूलन

महाशिवरात्रि व्रत 18 फरवरी दिन शनिवार को



आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार 18 फरवरी दिन शनिवार को सूर्योदय 6 बजकर 23 मिनट पर और त्रयोदशी तिथि का मान सायंकाल 5 बजकर 43 मिनट तक पश्चात चतुर्दशी तिथि, उत्तराषाढ़ नक्षत्र दिन में 3 बजकर 34 मिनट तक पश्चात श्रवण नक्षत्र, इस दिन व्यतिपात् योग सायंकाल 5 बजकर 54 मिनट पश्चात विमान योग और चन्द्रमा की स्थिति मकर राशिगत है। सांयकाल 3 बजकर 34 मिनट से सम्पूर्ण रात्रि पर्यन्त सर्वार्थसिद्धियोग भी है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव, लिंग स्वरुप में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि के अर्धरात्रि में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए। इसलिए जिस दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्धरात्रि में यह तिथि विद्यमान रहती है, उसी दिन महाशिवरात्रि का व्रत और अर्चन सम्पन्न किया जाता है।

इस वर्ष 18 फरवरी को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि होने से यह दिन महाशिवरात्रि व्रत के लिए शास्त्रोक्त मान्य रहेगा। फाल्गुन मास की कृष्ण अर्धरात्रि वाली चतुर्दशी वाली तिथि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। सनातन धर्म में तीन यात्रियों का सर्वाधिक महत्त्व है। इसमें महाशिवरात्रि के अतिरिक्त कृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि और कार्तिक अमावस्या की रात्रि प्रमुख हैं। ये तीन रात्रियां महारात्रि, मोहरात्रि एवं कालरात्रि के नाम से नाम से जानी जाती है। वैसे तो चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भी शिव हैं परन्तु इसमें फाल्गुन मास की चतुर्दशी उन्हें बहुत प्रिय है। इस विषय में प्रमाण मिलता है कि इस रात्रि को सर्वप्रथम शिवलिंग प्रकट हुआ था। शिवलिंग न केवल साक्षात शिव है, वरन इसमें सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है। शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और उर्ध्व में महादेव स्थित होते हैं। वेदी महादेवी है और लिंग महादेव हैं।

भगवान शिव त्रिदेवों में प्रमुख देव हैं। इन्हें सृष्टि का संहार पुरुष माना गया है। ब्रहमा जी सृष्टि को उत्पन्न करने वाले और विष्णु जी पालन करने वाले हैं। वेद और प्रकृति साहित्य में भगवान शिव की पूजा, अर्चना और उपासना का उल्लेख मिलता है। न केवल भारत वरन् विदेशों में भी भगवान शिव के मंदिर व शिवलिंग मिलते हैं। विश्व के प्राचीन सभ्यताओं में भी शिवलिंग पूजन के प्रमाण मिले हैं। इससे सिद्ध होता है कि भगवान शिव की पूजा अनादिकाल से की जा रही है। भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से श्रावण मास में की जाती है परन्तु महाशिवरात्रि के दिन भी उनकी पूजा के लिए महत्वपूर्ण दिन है। महाशिवरात्रि के दिन रात के चारों प्रहारों में भगवान शिव के पूजा के पूजन अर्चन और अभिषेक का विषय पर बताया गया है। प्रथम प्रहर में दूध, द्वितीय प्रहर में दही, तृतीय प्रहर में घृत द्वारा और चतुर्थ प्रहर में मधु द्वारा स्नान कराकर उनका पूजन करने से विशेष लाभ मिलता है।इस दिन व्रती भगवान शिव के निमित्त उपवास कर सम्पूर्ण रात्रि में भगवान शिव का पूजन और अभिषेक करता है।

एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया। वहां अनेक मृगों का शिकार कर लौटते समय मार्ग में वह थका हुआ किसी वृक्ष के नीचे सो गया। नींद खुलने पर वह देखा कि सन्ध्या काल हो चुका। ऐसे में इस भयंकर जंगल से गुजरना सही नहीं था। इसलिए उसने रात्रि को एक वृक्ष पर गुजारने का विचार किया। भाग्यवश‌वह जिस वृक्ष पर बैठा था, वह बिल्व का वृक्ष था। उस वृक्ष के नीचे एक प्राचीन शिवलिंग था और वह रात्रि महाशिवरात्रि थी। ओस की बूंदों से भीगे हुए बिल्वपत्र रात्रि में उस शिकारी के स्पर्श से नीचे शिवलिंग पर गिरे।इस प्रकार उस शिकारी ने अनजाने से ही शिवलिंग की पूजा अर्चना उस महारात्रि में कर ली। चूंकि वह प्रातः काल बिना खाए ही शिकार के लिए निकला था और रात्रि पर्यन्त कुछ भी ग्रहण नहीं करने के कारण उसने जो उपवास किया था, वह भगवान शिव के निमित्त हो गया। इसके फलस्वरूप आजीवन दुष्कर्म करने वाला वह शिकारी भी अन्तकाल में शिवलोक को प्राप्त हुआ।

इस दिन की गई पूजा अर्चना एवं अभिषेक से भगवान शिव विशेष रुप से प्रसन्न हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में अनेक कथाएं मिलती है, जिससे सिद्ध होता है कि जिस व्यक्ति ने इस रात्रि को भगवान शिव के निमित्त उपवास रखकर उनका पूजन अर्चन किया, उसे शिवलोक प्राप्त हुआ।

ऐसे ही अनेक कथा प्रसंग भी मिलते हैं जिसमें किसी ऐसे व्यक्ति ने अपने जीवन में कई बार पाप किए, लेकिन भगवान शिव के संसर्ग में आने पर वह स्वत:‌ ही पुण्य आत्मा बन गया। भगवान शिव की पूजा में रुद्राक्ष, भस्म और त्रिपुंड धारण का विशेष महत्व है। ये तीनों वस्तुएं सुलभ हैं। शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने का विशेष महत्व है। शिवलिंग पर आक के फूल, कनेर‌ के पुष्प, द्रोण पुष्प, अपामार्ग ( चिचिड़ा), कुश‌ के फूल, शमी के पत्ते, नीलकमल, धतूरा एवं शमी के फूल उत्तरोत्तर शुभ माने जाते हैं। भगवान शिव की पूजा में मौलसिरी अर्थात आक के फूल का विशेष स्थान है। भगवान शिव को ऐसे कुछ वस्तुएं अर्पित की जाती है जो अन्य देवताओं को नहीं चढ़ाई जाती हैं। वैसे तो भगवान शिव श्मशान में विराजते हैं लेकिन शिवमन्दिर में उनके साथ उनका सम्पूर्ण परिवार और नन्दी आदि विराजमान रहते हैं। मन्दिर मे जाकर शिवलिंग सहित उनके सम्पूर्ण परिवार का पूजन करने से उनकी विशिष्ट कृपा प्राप्त होती है और इस महाशिवरात्रि पर शिव जी के निमित्त उपवास करते हुए मन, वचन और कर्म से उनके लिए किया गया पूजन कर्म निश्चित रुप से साधन का कल्याण करने वाला होता है।

भगवान शिव बोले भण्डारी हैं। उनकी पूजा जो व्यक्ति जिस भाव से करता है, वे उससे ही प्रसन्न हो जाते हैं। सर्व सुलभ जल से जब शिवलिंग का अभिषेक करते हैं तो भी शिव जी का विरोध आशिर्वाद प्राप्त होता है।अपने इस प्रकृति के कारण उन्हें शिव और भोलेनाथ जैसी संज्ञा दी गई है।वे सभी का कल्याण करने वाले हैं।इस सृष्टि में उन्हीं की कृपा से मानव जाति का उत्थान हुआ है।उन्हीं के द्वारा प्रकाशित ज्ञान से मानव जाति का बौद्धिक विकास हुआ है।वे समस्त भौतिक सुविधाओं को प्रदान करने वाले और जीवन को सही राह पर चलाने वाले प्रमुख देव हैं। अपने इस गुण के कारण शिव जी सनातन धर्म में एक प्रमुख देव हैं। 

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