भारतीय नश्ल की सभी गायों का दूध मानव स्वास्थय के लिए अमृत
गोरखपुर। भारतीय नश्ल की सभी गायों का दूध मानव स्वास्थय के लिए अमृत है। भारतीयों ऋषियों ने यह शोध आज से हजारों वर्ष पहले कर लिया था। वेद के रचयिताओं ने लिखा है कि गाय विश्व की माता है। गाय की महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि माॅ की ही तरह नौ माह दस दिनों में गाय भी बच्चा देती है। माॅ के दूध के बाद एक मात्र गाय का दूध माॅ के दूध जैसा अमृत है। उन्होनें गो वंश पर आधारित कृषि और कृषि उत्पादों पर नये शोध एंव उनके स्वयं के द्वारा किये जा रहें प्रयोंगो को विस्तार से रखा।
गोरखनाथ मन्दिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज की 50वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की पाचवीं पुण्यतिथि समारोह के अन्तर्गत ''भारत की सनातन संस्कृति में गो-सेवा का महत्व'' संगोष्ठी में मुख्य वक्ता गो सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रो0 श्याम नन्दन जी ने कहा कि भारत में नई कृषि क्रान्ति का युग दस्तक दे रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कृषि को भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनाने का जो अभियान छेड़ रखा है वह जीरो बजट कृषि योजना और गो वंश के संरक्षण संर्वधन से ही पूर्ण होगा। गो वंश की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। आगे भारतीय नश्ल की गायों पर हुए शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि कृषि रासायनिक खादो और जैविक खादों की अपेक्षा गो वंश के गोबर और गो मूत्र पर आधारित खेती न केवल हमारी लागत शून्य करेगी अपितू स्वास्थ्य वर्धक अन्य का उत्पादन करेगी और किसानो की आय मे अकल्पनीय वृद्धि होगी। न्यूजीलैंड एवं आस्ट्रेलिया में पशु वैज्ञानिकों ने भारतीय नश्ल की गायों और जर्सी गायों के दूध पर जो शोध निष्कर्ष दिये है वह हमारी आॅख खोलने वाला है। जर्सी गायों का दूध उतेजना पैदा करता है। विशाद पैदा करता है। रक्तचाप बढ़ाता है। जबकि भारतीय नश्ल की सभी गायों का दूध मानव स्वास्थय के लिए अमृत है। भारतीयों ऋषियों ने यह शोध आज से हजारों वर्ष पहले कर लिया था। वेद के रचयिताओं ने लिखा है कि गाय विश्व की माता है। गाय की महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि माॅ की ही तरह नौ माह दस दिनों में गाय भी बच्चा देती है। माॅ के दूध के बाद एक मात्र गाय का दूध माॅ के दूध जैसा अमृत है। उन्होनें गो वंश पर आधारित कृषि और कृषि उत्पादों पर नये शोध एंव उनके स्वयं के द्वारा किये जा रहें प्रयोंगो को विस्तार से रखा। उन्होनें कहा कि इधर के 30-40 वर्षो में हमने रासायनिक खादों के माध्यम से खाद्यानों में जहर घोला है जिसके कारण चिकित्सालय भरे पड़े है। इधर जैविक खेती का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ है जो अव्यवहारिक है जो मैं स्वयं अपने खेतों में इसकी स्थलता प्रमाणित कि है। जैविक खेती के लिए एक एकड़ खेत में तीन सौ कुण्टल खाद चाहिए और इसके लिए 18-20 गो वंश चाहिए। जबकि पद्म श्री सुभाष कालेकर द्वारा जीरो बजट आधारित प्रकृतिक खेती का जौ तरीका खोजा गया है। वह भारत के ख्ेातो और किसानों की काया पलट देगी। उन्होनें कहा कि भारतीय नश्ल के गायों के गोबर और गो मूत्र में ही वह ताकत है कि उसर भूमि को एक वर्ष में उपजाउ बना देगीें।
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