क्यों करना पड़ा था माता सीता को पिंडदान ?

हिंदू शास्त्रों में आमतौर पर पुत्र व पौत्र - प्रपौत्र द्वारा श्राद्ध तर्पण का विधान बनाया गया है। मगर बाल्मीकि रामायण में सीता द्वारा अपने ससुर राजा दशरथ के पिंडदान का उल्लेख मिलता है। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने में राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई, पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। अपराहन काल में राजा दशरथ की आत्मा पिंडदान की मांग कर बैठी तो कोई उपाय न देखकर सीता जी ने गया तीर्थ में फल्गु नदी के तट पर वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निर्मित पिंड दान दे दिया। थोड़ी देर में श्री राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय बीतने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है? इसके लिए श्री राम ने सीता से प्रमाण मांगा। तब सीता ने कहा कि इस फल्गु नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म की गवाही दे सकते हैं। परंतु श्रीराम ने जब इसकी जानकारी हासिल की तो वट वृक्ष को छोड़कर बाकी तीनों गवाही देने से मुकर गए। तब सीता जी ने राजा दशरथ का ध्यान कर उनसे गवाही देने की प्रार्थना की और उन्होंने ऐसा किया। तब श्रीराम आश्वस्त हुए और उन्होंने सीता का आभार जताया मगर तीनों गवाह गवाहों द्वारा मुकरने से नाराज होकर माता सीता ने उन्हें क्रोधित होकर श्राप दिया कि फल्गु नदी सिर्फ नाम की नदी रहेगी उसमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गु नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोग का जूठा खाएगी और केतकी के फूल कभी पूजा में नहीं चढ़ाए जाएंगे। वहीं वट वृक्ष को सीता माता का आशीर्वाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्रियां तेरे स्मरण कर अपने पति को दीर्घायु की कामना करेंगी।


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