राम ने पिता दशरथ का श्राद्ध यहीं किया था

तमिलनाडु का तिलतर्पण पुरीरू यहां गज नहीं इंसान के रूप में विराजे हैं गणेश


    पितृ शांति की पूजा नदी के तट पर होती हैए पर यहां ये अनुष्ठान मंदिर के अंदर ही होता है


कुटनूर।  पितरों के श्राद्ध के लिए दक्षिण भारत में तमिलनाडु का तिलतर्पण पुरी सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। मान्यता है कि यहां भगवान राम ने अपने पितरों की शांति के लिए पूजा की थी। एक और खास बात यह है कि यहां देश का एकमात्र ऐसा मंदिर हैए जहां भगवान गणेश का चेहरा गज नहीं इंसान का है। इस मंदिर को आदि विनायक मंदिर कहा जाता है। 


पौराणिक कथा


 मंदिर के पुजारी श्री स्वामीनाथ शिवाचार्य ने बताया कि पौराणिक कथा है कि जब भगवान राम अपने पिता दशरथ का अंतिम संस्कार कर रहे थे, तब उनके बनाए चार पिंड, चावल के लड्डू लगातार कीड़ों के रूप में बदलते जा रहे थे। ऐसा बार-बार हुआ तो राम ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भोलेनाथ ने उन्हें आदि विनायक मंदिर पर आकर पूजा करने के लिए कहा। इसके बाद राम यहां आए और पिता की आत्मा की शांति के लिए भोलेनाथ की पूजा की। 


 चावल के वो चार पिंड चार शिवलिंग में बदल गए। वर्तमान में यह चार शिवलिंग आदि विनायक मंदिर के पास मुक्तेश्वर मंदिर में मौजूद हैं। भगवान राम की शुरू की गई प्रथा आज भी यहां जारी हैं। आमतौर पर पितृ शांति की पूजा नदी के तट पर की जाती है, लेकिन यहां मंदिर के अंदर ही यह अनुष्ठान होता है। मंदिर में पितृ दोष सहित, आत्म पूजा, अन्नदान आदि किया जाता है। अमावस के दिन पिंड दान का विशेष महत्व है। इसी विशेषता के चलते इस मंदिर को तिल और तर्पणपुरी; (पिंड दान) तिलतर्पण पुरी कहा जाता है। यहां पर पितृ दोष की शांति के लिए पूजा विशेष रूप से की जाती है। मंदिर परिसर में नंदीवनम यानी गोशाला और भगवान शिव के चरण की प्रतिमा भी मौजूद है।
      तिलतर्पण पुरी तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले में कुटनूर शहर से करीब 2 किमी दूर है। देवी सरस्वती का एकमात्र मंदिर भी कूटनूर में ही है। श्रद्धालु सरस्वती मंदिर के दर्शन किए बगैर नहीं जाते हैं। इस सरस्वती मंदिर को कवि ओट्टकुठार ने बनवाया था।
     


    पितृ पूजा के लिए इसे काशी और रामेश्वरम के बराबर माना गया है 


    मंदिर के संरक्षक लक्ष्मण चेट्टियार बताते हैं कि यहां हजारों श्रद्धालु गणेशए सरस्वती और शिव मंदिर में आते हैं। नर मुख गणेश मंदिर 7वीं सदी का बताया जाता है। मान्यता है कि माता पार्वती ने अपने मैल से गणेश को बनाया था। यह उन्हीं का पहला रूप है। पितृ-पूजा के लिए इसे काशी.रामेश्वरम के बराबर माना गया है।


                                                                                                                        


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