अनोखी परंपरा है राघव-शक्ति का मिलन


विजयादशमी का उल्लास तो हर तरफ देखा जा सकता है पर राघव शक्ति मिलन के दौरान जो दर्शकों में जो उल्लास रहता है वह शायद ही कहीं और देखने को मिले। यह अपने आप में एक अनोखी परम्परा है। कहते हैं कि रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम ने आदिशक्ति मां भगवती की आराधना की थी। इस परम्परा का आधार वही है। बर्डघाट रामलीला में रावण दहन के बाद भगवान श्रीराम बसंतपुर तिराहे पर पहुंचते है और वहीं पर दुर्गाबाड़ी समेत शहर की अन्य दुर्गा प्रतिमाएं पहुंचती है और वहीं पर होता है राघव-शक्ति मिलन। विजयादशमी के अवसर पर राघव-शक्ति मिलन देखने वाले लोगों का जमावड़ा शाम से ही लगने लगता है। भगवान श्री राम भी बर्डघाट रामलीला मैदान में विशालकाय रावण दहन करने के बाद मां भगवती की आराधना के लिए बसंतपुर के लिए जुलूस के साथ पहुचते हैं। बसंतपुर पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत होता और उन्हें मंच पर विराजित किया जाता। परम्परा के मुताबिक दुर्गाबाड़ी में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा भी विसर्जन के लिए रवाना हुई। और उनके पीछे शहर की की अन्य दुर्गा प्रतिमाएं। सड़क के किनारे एवं घरों की छतों पर खड़े श्रद्धालु आस्था और श्रद्धा के साथ मां दुर्गा के सम्मुख शीश नवाते हैं। मां की प्रतिमा जैसे ही बसंतपुर तिराहे पर पहुंचती है भक्तों के जयघोष का स्वर और तेज हो जाता। सबसे पहले मां को भगवान राम की प्रदिक्षणा कराई जाती। तत्पश्चात भगवान राम भी मां भगवती की अराधना करते हुए उनकी आरती उतारते हैं। इसके बाद प्रतिमाएं विसर्जन के लिए रवाना होती हैं।


रामलीला हमारी सांस्कृतिक धरोहर


रामलीला हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। रामलीला लोक मनोरंजन का लोकप्रिय माध्यम बनी थी। रामलीला में लोगों की रुचि कम होने के कारण रामलीला कमेटियां अर्थाभाव का शिकार भी हुई हैं। इन सब के बावजूद यहां बर्डघाट रामलीला कमेटी तकरीबन डेढ़ सौ वर्ष से मंचन हो रहा है। राधव शक्ति मिलन भी इसी कमेटी के कार्यक्रम का हिस्सा है।


 


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