बंगाली समाज ने की थी दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की शुरुआत
गोरखपुर में दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना का इतिहास 123 वर्ष पुराना है। यहां दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना का प्रारंभ बंगाली समाज के किया गया जो धीरेधीरे लोकप्रिय होता गया और गली-मोहल्लों में दुर्गा प्रतिमाएं सजने लगीं। इस समय जिले के शहर और ग्रामीण क्षेत्र को मिलाकर तकरीबन दो हजार सेअधिक दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। दुर्गा प्रतिमाओं की यह संख्या संभवतः उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है।
गोरखपुर। दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की परंपरा का प्रारम्भ बंगाल से शुरू हुई। वहां व्यापक पैमाने पर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। बंगाली समिति के सचिव डा. अरुण सरखले ने बाताया कि गोररखपुर में सांस्कृतिक संस्था आर्य नाट्य संस्था ने 112 वर्ष पूर्व दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की परंपरा का प्रारम्भ कियाशुरुआती दौर में यह संस्था हर साल के अलग-अलग स्थानों पर दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना करती थी। इसी क्रम में बंगाली समाज से जुड़े लोगों ने 1953 में बंगाली समिति बनाया लेकिन यह संस्था रजिस्टर्ड नहीं थी और न ही इस संस्था के पास ऐसी कोई जमीन थी जहां दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की जा सके लिहाजा यह समिति भी कभी दीवान बाजार में तो कभी चरन लाल चौक पर दुर्गा प्रतिमा की स्थापना करती थी। इसके अलावा उस समय गोरखपुर के धनाढ्य भगवती प्रसाद के घर पर इस समिति द्वारा कभी-कभी दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की जाती थी। 1964 में बंगाली समिति एक रजिस्टर्ड संस्था बन गई। इस बीच भगवती प्रसाद ने दुर्गाबाड़ी में अपनी जमीन दुर्गा प्रतिमा की स्थापना के लिए समिति को दान में दे दी। तब से लेकर दुर्गाबाड़ी में अनवरत दुर्गा पूजा की स्थापना की जाती है। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि गोरखपुर में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना का प्रारंभ 119 वर्ष पूर्व 1896 में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डा. योगेश्वर राय ने की थी।
Comments