गोरक्षपीठ में एक साथ होती है शिव, शक्ति और राधव की पूजा

 



गोरखपुर। गोरक्षपीठाधीश्वर का हिन्दू धर्म के विभिन्न मतों और दुनिया को योग की शिक्षा दी और उसी के साथ नाथ पंथ की सम्प्रदायों के एकीकरण में बड़ा महत्व है। नाथ पंथ के योगी शैव यात्रा प्रारम्भ हुई। जब हम भगवान शिव के उपासना पक्ष को उपासक यानि भगवान शिव के उपासक हैं। लेकिन चैत्र और शारदीय देखते हैं तो उनका एक स्वरूप अर्द्धनारीश्वर यानि एक ही शरीर में नवरात्र में नौ-नौ दिन गोरक्षपीठ में शक्ति की विशेष उपासना होती आधा हिस्सा नारी और आधा शिव का दिखता है। शैव मतावलम्बी है। गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ स्वयं नौ दिन देवी शक्ति नाथ सम्प्रदाय में आरम्भ से शिव और शक्ति के इस रूप की की उपासना करते हुए हर दिन पूरे विधि-विधान से मां की आराधना उपासना होती रही है। यही शक्ति मां दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। प्रदेश की कमान संभालने के बाद भी वह इस गोरक्षपीठ हुई इसलिए नाथ पंथ में मां दुर्गा और शक्ति पूजा का की परंपरा को पूरे विधि-विधान से पालन कर रहे हैं। नवरात्र के विशेष महत्व है। नाथ पंथ ने अपनी उपासना के पहले दिन कलश स्थापना से लेकर विजयदशमी को विशेष परिधान साथ राष्ट्रीयता को आधार बनाया। स्वतंत्रता में अल सुबह से प्रत्येक विग्रह-देव की पूजा-अर्चना और फिर संग्राम में भी नाथ पंथ के योगियों की बड़ी दोपहर तिलकोत्सव में पीठ से जुड़े लोग अपने महाराज को तिलक भूमिका थी। धीर-धीरे शक्ति, शिव और राम करते हैं और साफा बाधने की भी परंपरा है। सायं में गोरक्षपीठाधीश्वर को जोड़कर वैष्णव, शैव, शाक्य, गणपति विशेष परिधान में पीठ के फौज के साथ पूरे अस्त्र-शस्त्र से लेस सहित समाज के भिन्न-भिन्न पंथोहोकर अपने महाराज के साथ गोरखनाथ मंदिर से रामलीला मैदान सम्प्रदायों के एकीकरण का अभियान नाथ तक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है जहां गोरक्षपीठाधीश्वर भगवान पंथ ने चलाया और इसकी एक उपासना श्रीराम का राजतिलक करते हैं। यात्रा से पूर्व सभी देव-विग्रह की पद्धति विकसित हुई जिसका नेतृत्व फिर ब्रह्मलीन संत-महंत की इसके बाद गुरु गोरक्षनाथ की पूजा- आज भी गोरखनाथ मंदिर और अर्चना के उपरान्त महाराज विशेष रथ पर विराजमान होते हैं यहां इनकी आरती-पूजन की जाती है और फिर पुष्पों की बर्षा केसाथ यात्रा प्रारंभ होती है। जो मंदिर के मुख्य द्वार से होते हुए मानसरोवर मंदिर पहुंचती है यहां पर भगवान शिव की अभिषेक-पूजन करते हैं। यात्रा पुनः अपने गंतव्य को निकल कर मानसरोवर राम लीला मैदान पहुंचती है। यहां भगवान श्रीराम का तिलक-आरती करते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि शिव उपासक नाथ पंथ में शक्ति की पूजा का इतना महत्व क्यों हैं और आखिर नाथ पंथ ने हिन्दू धर्म के सभी मतों, सम्प्रदायों का एकीकरण कैसे किया। शिव, शक्ति और राघव के एक साथ पूजन की परम्परा कैसे पड़ी और गोरक्षपीठ ने इस परम्परा की अगुवाई कैसे की। नाथ पंथ के जानकार डॉ. प्रदीप राव इसकी व्याख्या कुछ यूं करते हैं। नाथ पंथ के प्रवतक गरु गोरक्षनाथ भगवान शिव के अवतारी हैं. उन्होंने दुनिया को योग की शिक्षा दी और उसी के साथ नाथ पंथ की यात्रा प्रारम्भ हुई। जब हम भगवान शिव के उपासना पक्ष को देखते हैं तो उनका एक स्वरूप अर्द्धनारीश्वर यानि एक ही शरीर में आधा हिस्सा नारी और आधा शिव का दिखता है। शैव मतावलम्बी नाथ सम्प्रदाय में आरम्भ से शिव और शक्ति के इस रूप की उपासना होती रही है। यही शक्ति मां दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित हुई इसलिए नाथ पंथ में मां दुर्गा और शक्ति पूजा का विशेष महत्व है। नाथ पंथ ने अपनी उपासना के साथ राष्ट्रीयता को आधार बनाया। स्वतंत्रता संग्राम में भी नाथ पंथ के योगियों की बड़ी भूमिका थी। धीर-धीरे शक्ति, शिव और राम को जोड़कर वैष्णव, शैव, शाक्य, गणपति सहित समाज के भिन्न-भिन्न पंथोसम्प्रदायों के एकीकरण का अभियान नाथ पंथ ने चलाया और इसकी एक उपासना पद्धति विकसित हुई जिसका नेतृत्व आज भी गोरखनाथ मंदिर और गोरक्षपीठ कर रही है।


Comments