कुबेर की कृपा से आती हैं लक्ष्मी


कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते है पीयूषवाणि भगवान धनवन्तरि के नाम सर्वविदित है संसार के रोगात प्रणियों के लिए अमृत-कलश के लिए हुए समुद्र मंथन से उत्पन्न होने वाले धन्वंतरि ने संसार में आयुर्वेद विद्या का प्रसार कर जो महान उपकार किया है कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी उन्ही भगवान का जयंती दिन है जिसे हम सब धनतेरस के नाम से जानते है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी सायंकाल घर से बाहर मृत्युनिवारक चार बत्तियों वाला दीपक यमराज को दान करने का विधान है।


कार्तिक स्यासिते पक्षे त्रयोदश्या निशामुखे, यमदीप बहिर्द धादप मृत्यु विनश्यति


धनतेरस के दिन महालक्ष्मी की प्रतिमा या फोटो के सामने श्री यंत्र, कुबेर यंत्र तथा कनक धारा यंत्र की स्थापित किया जाता है। श्री यंत्र मध्य मे रखे तथा दोनों तरफ कुबेर यंत्र एवं कनक धारा यंत्र स्थापित होता है। शास्त्रों में धन त्रयोदशी को कुबेर दिवस माना जाता है और इस दिन श्री कुबेर की पूजा करने का विधान है कुबेर लक्ष्मी के सेवक, द्वारपाल खजाने के रक्षक देव हैं इनकी कृपा से ही लक्ष्मी का आगमन होता है। अतः त्रयोदशी के दिन प्रातः काल विधि विधान सहित कुबेर की पूजा की जाती है।


कुबेर मंत्र: ऊँ श्री ॐ हीं श्रीं हीं क्लीं, श्री क्लीं वितेश्वराय नमः।।


इस दिन प्रदोष काल में यम के लिए दीपदान एवं नैवेध समर्पित करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। शास्त्रों में ऐसा वचन सर्वाश में सत्य ही है। मानव-जीवन को अकाल मृत्यु से बचने के लिए दो वस्तु आवश्यक है प्रकाश ज्ञान और नैवेध-समुचित खुराक यदि दोनों ही वस्तु आप खुले हाथों दान दे तो अकाल मृत्यु से निःसंदेश रक्षा होती।


-आचार्य पंडित भरत मिश्र


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