अब बस न्यायालय के फैसले का इंतजार


रामजन्म भूमि मामले में 17 नवंबर तक फैसला आना है, इस बीच क्या चल रहा है राम की नगरी अयोध्या में, इसका जायजा लिया गया



अयोध्या भगवान राम की नगरी है. यहां अभिवादन “जय राम जी” कहकर होता है. सो, राम की पैड़ी सज रही है. राम जन्म भूमि विवाद जब शुरू हुआ था तब से आज तक के बीच पूरी एक पीढ़ी बदल गई. राम जन्म भूमि आन्दोलन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण लोगों का स्वर्गवास भी हो गया. वेदों – पुराणों और धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर अयोध्या की जो तस्वीर मन – मस्तिष्क में उभरती है. वो अयोध्या आज कैसी दिखती है ? प्रभु श्री राम की जन्म भूमि में संतो – महंतो की दिनचर्या कैसी रहती है? अयोध्या की चमक – धमक कैसी है ?



सरयू नदी के तट पर संजय पाण्डेय यहां वर्षो से पूजा पाठ करते आ रहे हैं. संजय ने कहते हैं “गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में लिखा है - सरयू सरि कलि कलुष नसावन / अवध पुरी मम परम सुहावन.- कलियुग में सरयू नदी पाप नाशिनी होगी. इस शहर की पहचान राम जन्म भूमि और सरयू नदी की वजह से है. मगर यहां का इतिहास ठीक ढंग से लिखा नहीं गया. यहां जो भी विवरण है उसमे औरंगजेब, मीर बाकी, बाबर, नवाब अलीवर्दी, नवाब सुजाउद्दौला और ना जाने कौन – कौन ! लेकिन असलियत में अयोध्या की पहचान है तो बस भगवान राम के नाम पर है. राम अयोध्या के हैं और अयोध्या राम की है.
राम की पैड़ी से थोड़ा आगे बढ़ने पर घाटों की श्रृंखला है. तुलसी घाट, वैदेही घाट, श्रीराम घाट, दशरथ घाट, भरत घाट, शत्रुघ्न घाट एवं माण्डवी घाट. इन दिनों इन घाटों पर साफ़ सफाई जोर-शोर से चल रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में दीपोत्सव मनाया गया है. ऐसा दीपोत्सव जिस पर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में इसे दर्ज किया गया। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह तीसरी दीपावली है लेकिन देखकर ऐसा लगता है कि दीपावली के पहले जिस तरह से इन घाटों की मरम्मत कराई जाती है फिर पलट कर इन घाटों का हाल चाल लेने कोई नहीं आता। आस–पास के कुछ स्थानों पर नजर गई तो साफ़ दिखा कि गत वर्ष के लगे पत्थर उखड़ गए थे। अब उन्हें फिर से लगाया जा रहा है।
राम की पैड़ी' में मंदिरों की एक कतार सी दिखती है। बाहरी हिस्से को पीले रंग से रंग दिया गया है। पुजारी दुर्गेश पाण्डेय बताते हैं “ एक बार लक्ष्मण जी तीर्थाटन के लिए जा रहे थे। तभी भगवान राम, उन्हें सरयू नदी के तट पर ले आए। उन्होंने अपनी लीला से लक्ष्मण जी को दिखाया कि प्रतिदिन यहां पर सभी तीर्थ स्नान करने आते हैं.”
राम की पैड़ी पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर 'नागेश्वर नाथ' पर अचानक नजर पड़ी तो लगा इस मंदिर में कोई अदृश्य आकर्षण है। उसी आकर्षण के वशीभूत मंदिर परिसर में प्रवेश किया। दोपहर का समय है। मंदिर में श्रद्धालू दर्शन कर रहे हैं। मंदिर से थोड़ी ही दूर पर हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित हो चुकी है। वहां के पुजारी मंत्रोचार में तल्लीन हैं। बताया गया कि हवन हो रहा है। मंदिर प्रांगण में कुछ पुजारी जपमाली में रूद्राक्ष की माला से जप कर रहे हैं। धार्मिक धारावाहिकों को देखने वाली पीढ़ी को शायद जपमाली शब्द चौंका सकता है! इस पर पंडित जी हंसते हुए कहते हैं “धार्मिक मान्यता है कि मंत्रोचार जिस माला पर किया जाता है। उस पर किसी की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए.”
राम की पैड़ी से जब आगे बढ़े तब यह समझ में आया कि मंदिरों और मठों का सिलसिला सिर्फ राम की पैड़ी में ही नहीं पूरी अयोध्या में है. अब, हनुमान गढ़ी में अयोध्या के राजा हनुमान जी महाराज का दर्शन करिए. अगर आप चौंक गए हैं तो थोड़ा दिल थाम के सुनिए. शायद पहले कभी नहीं सुना हो. जी हां , वर्तमान समय में अयोध्या के राजा हनुमान जी हैं. भगवान राम 11 हजार वर्ष राज करने के बाद जब जल समाधि के लिए जाने लगे थे तब उनके साथ अयोध्या के लोगों ने भी जल समाधि ले ली थी. जाते समय भगवान राम ने हनुमान जी को अयोध्या का राज – पाठ सौंप दिया. भगवान राम ने हनुमान जी से कहा कि जब तक इस जग में राम कथा चलती रहेगी तब तक अयोध्या में वास करते हुए पूरी दुनिया में लोगों की रक्षा करिएगा. तब से अयोध्या में हनुमान जी राजा के रूप में विराजमान हैं. यही वजह है जो भी अयोध्या आता है वह राजा के दरबार अर्थात हनुमान जी के यहां दर्शन करने अवश्य जाता है।
हनुमान गढ़ी में मंदिर के द्वार पर कुछ संतों की टोली ढोलक बजाकर भजन गा रही है. राम लला विराजमान के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास बताते हैं कि “हनुमान जी की पूजा, यहां राजा के रूप में होती है. प्रत्येक मंगलवार और हनुमान जी के जन्म उत्सव पर जब आरती होती है तब उन्हें सोने का मुकुट पहनाया जाता है.”
अब यहां से भगवान रामलला विराजमान के दर्शन के लिए चलते हैं. रामलला विराजमान के मंदिर के चारों तरफ कड़ा पहरा है. एकल मार्ग से होकर अन्दर की तरफ जाना है. शुरुआत में ही मोबाइल फोन, घड़ी, कलम, चाभी जमा करा ली गई. यहां से पैदल चलकर कुछ दूर पर पहला सुरक्षा घेरा मिला जहां गहन तलाशी ली गई. उसके कुछ दूर बाद दूसरा सुरक्षा घेरा, कुछ देर चलकर तीसरा सुरक्षा घेरा और फिर चौथा व आखिरी सुरक्षा घेरा, वहां की गहन तलाशी से गुजरने के बाद लोहे के निर्मित गलियारे से होते हुए आगे बढ़ रहे हैं. जिस गलियारे में प्रवेश करके आगे बढ़ रहे हैं वो दाहिने बाएं और और ऊपर से लोहे का बना हुआ है. धीरे-धीरे आगे बढ़ने पर वो जन्म स्थान आ गया. जहां पर टेंट में रामलला विराजमान हैं. भक्तिभाव से दर्शन के साथ-साथ हर हिन्दू के मन में आक्रोश भी उभरता है. क्रोध स्वाभाविक भी है. दक्षिण भारत से आई एक वृद्ध महिला को तैनात पुलिस कर्मी राजेश बार-बार कह रहें हैं कि – माता जी दाहिनी तरफ देखिये. मंदिर दाहिनी तरफ है, माता जी आगे कोई मंदिर नहीं है. उधर एग्जिट द्वार है मगर वह महिला आगे बढ़ जाती है. उस महिला की कोई गलती नहीं है. उस कड़ी सुरक्षा वाले गलियारे से गुजरते हुए सभी को लगता है कि सामने एक मंदिर होगा. जहां भगवान राम – सीता और लक्ष्मण जी की मूर्ति के दर्शन होंगे. मगर प्रवेश मार्ग से करीब पौन किलोमीटर चलकर दाहिनी तरफ रामलला विराजमान एक टैंट में हैं और सफ़ेद चमकदार कपड़े पर उनकी मूर्ति स्थापित है.
मणि राम दास छावनी: अयोध्या की एक ख़ास बात है. दिन में बारह बजने के बाद शायद ही किसी संत – महात्मा के दर्शन हो पाये. दिन के साढ़े तीन बज रहे थे. सो, करीब एक घंटा इंतज़ार के बाद संदेश प्राप्त हुआ कि महाराज जी का जिन्हें दर्शन करना हो वो लोग सीढ़ी से ऊपर जाएं. मणि रामदास छावनी में एक पुराना भवन, चमक- धमक से दूर. जिस कमरे में आसन लगा कर नृत्य गोपाल दास बैठते हैं वहां पर पीछे राशन एवं अन्य सामान बेतरतीब ढंग से रखा हुआ दिखाई दे रहा है. कुछ भक्तों को प्रसाद देने के बाद नृत्य गोपाल दास जी मंदिर के सवाल पर कुछ देर तक मौन रहे. फिर बोल पड़े –“केंद्र में मोदी और प्रदेश में योगी, अब मंदिर नहीं बनेगा तो कब बनेगा ! मंदिर का निर्माण शीघ्र से शीघ्र शुरू हो जाना चाहिए. यही हमारी इच्छा है. इस मंदिर आन्दोलन को इतने वर्ष बीत गए. परमहंस रामचंद्र दास जी, अशोक सिंघल जी, योगी आदित्यनाथ के गुरु – महंत अवैद्यनाथ जी राम मंदिर आन्दोलन में प्रमुख रूप से भागीदार थे. इन सभी लोगों की इच्छा थी कि इनके जीवनकाल में राम मंदिर का निर्माण हो. मगर ऐसा नहीं हो पाया. अब बहुत इंतजार हो चुका है. हम सभी संतों और करोड़ों हिन्दुओं की बस यही मांग है कि राम जन्म भूमि पर भगवान राम का भव्य मंदिर बने.अब इसमें विलम्ब नहीं होना चाहिए.”
वहां से कुछ दूर पर, रामलला विराजमान के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास का निवास है. दोपहर बाद वह अपने घर में रहते हैं. उनके कमरे में भगवान राम की तस्वीर लगी हुई. टी.वी चैनल के कैमरामैन उनकी बाइट लेने के लिए आये हुए हैं. टी.वी पर बयान देने के बाद जब उन्हें फुर्सत हुई तब उनसे बातचीत शुरू हुई. उनके निवास पर कोई ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं रहती है. राम जन्म भूमि मुक़दमे के पक्षकार महंत धर्मदास जी महाराज इनके गुरु भाई हैं. महंत अभिराम दास जी दोनों लोगों के गुरु थे. आचार्य सत्येन्द्र दास वर्ष 1958 में करीब 20 वर्ष की आयु में अयोध्या आये. अयोध्या में मध्यमा की पढ़ाई की. वाराणसी में शास्त्रीय और आचार्य की पढ़ाई की. उसके बाद अवध विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए की डिग्री हासिल की. दो बार 6 महीने के लिए हनुमान गढ़ी के पुजारी रहे. 1 मार्च 1992 को आचार्य सत्येन्द्र दास जी राम लला विराजमान मंदिर के मुख्य पुजारी बने.
वह बताते हैं कि अयोध्या को सीता जी का श्राप है. यहां आज भी कई जगह खंडहर दिखेंगे. जब भगवान राम लंका पर विजय करके लौटे थे तब एक बार अग्नि परीक्षा हो चुकी थी. दोबारा सवाल खड़ा होने का कोई तुक नहीं था. जानकी जी जाते समय अयोध्या से दुःखी होकर गईं थीं. जब माँ जानकी वापस जा रहीं थीं तब उनके पैर में चने का पौधा चुभ गया था. तभी उन्होंने श्राप दे दिया था. यही वजह है कि अयोध्या के 5 कोस की परिधि में कहीं पर चना नहीं उगता है. यहां पर चने की खेती भी नहीं होती है. चलते–चलते राम मंदिर का सवाल आ ही जाता है. आचार्य सत्येन्द्र दास कहते हैं – “देखिये कब से इंतजार हो रहा है. अब भगवान राम का मंदिर लगता है बन जाएगा.”
इस राम जन्म भूमि की यात्रा में कार्यशाला तो अभी शेष रह गई. आईये अब कार्यशाला में चलते हैं. कार्यशाला में आमतौर पर सन्नाटा पसरा हुआ है. एक समय यहां पर बहुत तेजी से पत्थर और स्तम्भ तराशे जा रहे थे. लोग राम मंदिर के कार्य में लगे हुए थे. बीते दशकों में ऐसा कई बार लगा कि बस अब मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा मगर फिर रूकावट आ गई. अब इस बार देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का इंतज़ार हो रहा है. कार्यशाला में एकाध लोग ही दिखाई पड़ रहे हैं. पत्थर और स्तम्भ बरसात के पानी से काले पड़ चुके हैं. यहां एक मॉडल रखा हुआ है जिसको देख कर भक्तगण अनुमान लगा पाते हैं कि भगवान राम का भव्य मंदिर ऐसा ही दिखेगा. वैसे कार्यशाला में कोई ख़ास गतिवधियां नहीं चल रही हैं मगर यहां पर काफी बड़े आकार में दो तीन तस्वीरें लगी हुई हैं. इसमें से एक तस्वीर है ठाकुर गुरदत्त सिंह की. इनकी फोटो के नीचे इनका परिचय लिखा हुआ है. यह जानना काफी दिलचस्प है कि कौन थे ठाकुर गुरुदत्त सिंह. फोटो पर जो परिचय लिखा हुआ है उसके अनुसार 22 / 23 दिसंबर 1949 को जब भगवान राम लला प्रकट हुए थे. उस समय ठाकुर गुरुदत्त सिंह फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट थे. हिन्दू विरोधी सरकार ने तत्काल मूर्ति को हटवाने का आदेश दिया था मगर उन्होंने इस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया था. इसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उनके इस योगदान के लिए करोड़ों हिन्दू हमेशा आभारी रहेंगे.


Comments