“हिंदी चीनी भाई-भाई“ का नारा लगाते हुए नेहरू देश को 1962 के अपमानजनक युद्ध में ले गए और भारत को चीन के हाथों अपनी भूमि और वीर सैनिकों के प्राण गंवाने पड़े। सरदार पटेल की भविष्यदृष्टि अक्षरशः सत्य साबित हुई
जम्मू-कश्मीर विलय, हैदराबाद के पाकिस्तान परस्त निजाम से निपटना, जूनागढ़ और भोपाल के नवाब के भारतघाती स्वप्नों को चकनाचूर करना, हर मौके पर सरदार पटेल की दूरदर्शिता, गहरी राजनैतिक समझ और स्पष्ट राष्ट्रीय दृष्टि दिखाई पड़ती है| निज़ाम की सेनाएं हैदराबाद के हिंदुओं का कत्लेआम मचा रहीं थीं, और नेहरू सैनिक कार्यवाही करने में हिचक रहे थे| पाकिस्तानी सेना कबायलियों के वेश में कश्मीर पर चढ़ आई थी, हजारों बलात्कार, क़त्ल, लूटपाट और आगजनी हो रही थी, और नेहरू विदेशनीति की दार्शनिक व्याख्याएं कर रहे थे। इन कठिन अवसरों पर सरदार पटेल ही थे, जिन्होंने सेना का मार्ग प्रशस्त करवाया था। 1924 में नेहरू बोल्शेविक क्रांति (कम्युनिस्ट क्रांति) की दसवीं वर्षगांठ में भाग लेने रूस पहुंचे और कम्युनिस्ट व्यवस्था से अभिभूत हो उठे। वो चमकते लाल शामियानों के पीछे सड़ते रूस के करोड़ों किसानों मजदूरों जनसामान्य और नस्लीय सफाए के शिकार लोगों के शव नहीं देख सके। न ही वो रूस की सत्ता पर पकड़ जमा चुके स्टालिन के, गांधी, भारत तथा स्वयं उनके प्रति हिकारत भरे विचारों को भांप सके। भारत लौटकर उन्होंने कांग्रेस की बैठकों में कम्युनिस्ट व्यवस्था की प्रशंसा और वकालत शुरू कर दी। जिस पर गांधी जी को लगाम कसनी पडी। आजादी के बाद, कम्युनिस्ट व्यवस्था से सम्मोहित नेहरू चीन की मित्रता के स्वांग में फंस गए। सरदार पटेल इससे चिंतित थे। उन्होंने नेहरू को पत्र लिखकर आगाह किया।
7 नवंबर 1950 को लिखे गए इस पत्र में सरदार ने लिखा “चीन की सरकार ने शांतिपूर्ण इरादों की घोषणा करके हमें धोखा देने का प्रयास किया है। वे हमारे राजदूत के मन में यह बात बिठाने में सफल हो गए हैं, कि चीन तिब्बत मामले का शांतिपूर्ण हल चाहता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस पत्राचार के बीच के समय में चीनी तिब्बत पर भीषण आक्रमण की तैयारी कर रहे हैं। त्रासदी ये है कि तिब्बतियों ने हम पर विश्वास किया है परंतु हम उन्हें चीन की कूटनीति और दुष्ट इरादों से बचाने में असफल रहे हैं। ......हमें समझ लेना चाहिए कि वे (चीन) शीघ्र ही तिब्बत की भारत के साथ हुई तमाम पुरानी संधियों (सीमा संबंधी) को नकार देंगे। तिब्बत के साथ हुई जिन संधियों के आधार पर भारत पिछले आधी सदी से सीमान्त संबंधी और वाणिज्यिक व्यवहार करता आया है, वे सारी संधियां (चीन द्वारा) अमान्य कर दी जाएंगी।..."
नेहरू नहीं माने
सेना और सैन्य तैयारियों की पूर्ण उपेक्षा की। “हिंदी चीनी भाई-भाई“ का नारा लगाते हुए नेहरु देश को 1962 के अपमानजनक युद्ध में ले गए और भारत को चीन के हाथों अपनी भूमि और वीर सैनिकों के प्राण गंवाने पड़े। सरदार पटेल की भविष्यदृष्टि अक्षरशः सत्य साबित हुई. उन्होंने लिखा था “चीन की जमीन की भूख (Chinese Irredentism) और कम्युनिस्ट साम्राज्यवाद पश्चिमी (यूरोपीय) विस्तारवाद और साम्राज्यवाद से अलग है। चीन ने विचारधारा का आवरण ओढ़ा हुआ है, ये उसे दस गुना अधिक खतरनाक बनाता है।...” इसी पत्र में उन्होंने लिखा “पिछले तीन वर्षों में हम नगा लोगों अथवा असम की पहाड़ी जनजातियों से कोई उल्लेखनीय संवाद नहीं कर पाए हैं। यूरोपीय मिशनरियां व अन्य आगंतुक उनके संपर्क में रही हैं, जिनका भारत और भारतीयों के प्रति कोई सदभाव कतई नहीं रहा है।" शेष इतिहास है
इतिहास राष्ट्र का अनुभव होता है
इतिहास वास्तविकता में याद रखा जाए तो समाज की आंख बन जाता है| ये आंख बतलाती है कि क्या है जिसका गौरव करना करना चाहिए और कौनसी गलतियां हुईं, जिन्हें दोहराया नहीं जाना चाहिए| ये समझ हमें बतलाती है कि हम कौन हैं और हमें किस ओर बढना चाहिए ।
सरदार पटेल के शब्दों में “हमारे पास स्पष्ट मत होना चाहिए कि हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं, और उसे किस विधि से प्राप्त करेंगे। किसी भी प्रकार की हिचक, अपने लक्ष्य को अर्जित करने में अनिर्णय अथवा अपने उन लक्ष्यों को अर्जित करने संबंधी नीतियों के प्रतिपादन में अक्षमता हमें दुर्बल बनाएगी, और उन खतरों की वृद्धि करेगी जो स्पष्ट लक्षित हो रहे हैं।"
इतिहासजन्य अनुभव है कि जैसा इतिहास पढ़ाया जाएगा वैसी पीढ़ी तैयार होगी। जैसे अक्स गढ़े जाएंगे वैसी परिपाटी बनेगी।
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