गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा भारत के धर्मप्राण हैं। इनमें गौमाता का महत्व सर्वोपरि है। गौमाता की बराबरी कोई देवी-देवता भी नही कर सकत हैं और न ही इसकी बराबरी किसी तीर्थ से की जा सकती है। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कमों से भी नहीं प्राप्त हो सकता। जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है।
पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आकर गौसेवा से विमुख हो रही नई पीढ़ी
माता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुंच जाएगा। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवीदेवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गोभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। भविष्य पुराण में लिखा है गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खुरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य चंद्र हैं। भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं - विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार। हमारी नई पीढ़ी लगातार पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आ रही है जिससे उन्हें गौमहत्ता की जानकारी नहीं हो पा रही है। साथ ही, धर्म ग्रंथों के अध्ययन के प्रति भी हमारी नई पीढी का रुझान कम हआ हैजिससे गौमहत्ता से वे परिचति नहीं हो पा रहे हैं। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि स्वतंत्रता के 63 वर्षों के बाद भी हमारे शिक्षा पाठ्यक्रमों में भारतीय संस्कृति की आधार गौमाता के वैज्ञानिक, धर्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है। स्वतंत्रता के पहले से आज तक गोहत्याबंदी के लिए कई आंदोलन चल रहै है। कई संत गोहत्याबंदी में ही लगे हुए हैं। फिर भी अपने देश में सरकारी अनुदान और सहयोग पर हजारों की तादाद में कत्लखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं, जिनमें हजारों की संख्या में प्रतिदिन गोहत्याएं हो रही हैं। ऐसा क्यों? इस पर विचार करने पर ध्यान में आता है कि हमें गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी से दूर कर दिया गया हैं। हमें इसके नकारात्मक गुण बता कर विदेशी नस्ल की गायों और भैंसों को अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। जिस कारण हम देशी गाय से दूर होते चले गये। यदि हमें गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक पक्ष की सही सही जानकारी होती तो सर्वगुण सम्पन्न गौमाता के संरक्षण में कोई समस्या नहीं आती। वर्तमान में देशी गाय के प्रति आम व्यक्तियों का चिंतन बदल रहा है। देशी गाय के दूध, दही, घी, गोबर व गौमूत्र का प्रयोग कई प्रकार की असाध्य बीमारियों में लाभदायक सिद्ध हो चुका है। गाय का पालन करके मनुष्य सभी मनोकामनाओं की कर सकता है। गोसेवा से भी मनवांछित फल पाये सकते हैं। हमारे समाज में आज भी गाय के प्रति धर्मिक भावनाएं बहुत अच्छी हैं। ग्यारस / अमावस दिन गायों का चारा देना, भोजन से पहले गाय के गौग्रास निकालना, गौशालाओं के लिए आर्थिक सहयोग करना आदि अनेक उदाहरणों के चलते गाय के प्रति धार्मिक भावनाएं बनी हुई है। कटु सत्य यह है जब तक हम गौमाता के बारे में पढ़ेगे या जानेंगे नहीं तब तक हम गौमाता को पालने या रक्षा करने के में भी नहीं सोंचेंगे।
-तनिष्क
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