गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. अभय जैन को बनाया गया जैन विद्या शोध संस्थान उपाध्यक्ष

गोरखपुर विवि के पूर्व शिक्षक प्रो. अभय जैन को बनाया गया जैन विद्या शोध संस्थान का उपाध्यक्ष



उत्तर प्रदेश जैन विद्या शोध संस्थान, लखनऊ, संस्कृति विभाग (उ.प्र.) के उपाध्यक्ष पद पर राज्य सरकार द्वारा प्रो. (डा.) अभय कुमार जैन का मनोनयन किया गया। गोमतीनगर स्थित संस्थान के निदेशक डा. राकेश सिंह ने प्रो. (डा.) अभय कुमार जैन को कार्यभार ग्रहण कराया।
पदभार ग्रहण करने के बाद डा. जैन ने माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति आभार व्यक्त करते हुये कहा कि भारतीय जैन संस्कृति संवर्धन के लिये निष्ठापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन सरकार की नीतियों के अनुसार करेंगें। समाज, शासन और सरकार के सहयोग से संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में  प्रभावी एवं सार्थक प्रयास किये जायेंगें। 
विशेषकर प्रदेश के जैन शिक्षण संस्थानों और जैनेतर समाज के शिक्षण संस्थानों जहाँ भारतीय जैन संस्कृति एवं संस्कारों की शिक्षा दी जाती है। इसको भी संस्थान से जोड़ने की दिशा में कार्य किया जायेगा। शोध हेतु प्रदेश के विश्वविद्यालयों का सहयोग लेने का प्रयास किया जायेगा।
अहिंसा एवं सत्य के प्रचार-प्रसार के लिये समय-समय राष्ट्रीय संगोष्ठियों के आयोजन भी किये जायेगे। बालक और बालिकाओं के लिये प्रतियोगिताओं के कार्यक्रम कराए जाएंगे।
इस मौके पर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो.पद्मकान्त, प्रो. पवन अग्रवाल, सदस्य अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान तरुणेश मिश्रा, राकेश राज जैन, नरेन्द्र जैन, संजीव जैन, प्रो. विजय जैन, डा. राका जैन, डा. धीरेन्द्र, डा.राकेश सिंह सहित जैन एवं बौद्ध संस्थान के अनेक लोगों ने शुभकामनाएं दी। डा. जैन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 1971 से अध्यापन एवं शोध का कार्य क्रमशः क्राइस्ट चर्च कालेज, कानपुर, एच.बी.टी.आई. कानपुर, बी.आई.टी.एस. पिलानी, सेण्ट एण्यूज कालेज गोरखपुर, इलाहबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज, दी.द.उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर। वर्तमान में  विश्वविद्यालय में अतिथि आचार्य के रूप में कार्यरत हैं। प्रो. अभय जैन धर्म के प्रखर वक्ता डा. जैन वर्ष 1978 से भारतीय जैन मिलन और तीर्थ संरक्षणी सभा तथा अनेक जैन संस्थाओं के साथ जुड़कर भारतीय जैन संस्कृति प्रचार एवं प्रसार कर रहे हैं। विशेषतः अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य, अनेकांत आदि  का प्रचार एवं प्रसार जैन एवं जैनेतर समाज को मानवीय गुणों के प्रति सजग रहने हेतु कर रहे हैं।


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