भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को परास्त करने के बाद अत्यधिक थकान होने के कारण विश्राम के लिए क्षीरसागर मे सो गये...
गोरखपुर। श्री हरि प्रबोधिनी एकादशी 8 नवम्बर दिन शुक्रवार को है। इस दिन प्रबोधिनी एकादशी व्रत रखने का विधान है। वाराणसी प्रकाशित हृषीकेश पञांग के अनुसार इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 32 मिनट पर और एकादशी तिथि का मान दिन में 12 बजकर 36 मिनट तक पश्चात द्वादशी तिथि, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र दिन में 1 बजकर 5 मिनट, अनन्तर उत्तराभाद्रपद, व्याघात योग दिन में 11 बजकर 18 मिनट, पश्चात हर्षण योग है। चन्द्रमा की स्थित मित्र बृहस्पति की राशि मीन पर और ध्वाॅक्ष नामक महाऔदायिक योग है। सूर्योदय व्यापिनी एकादशी होने से यह दिन ही प्रबोधिनी एकादशी के रूप में मान्य है।यह कार्तिक शुक्ल एकादशी, हरिप्रबोधिनी या देवउठनी के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को परास्त करने के बाद अत्यधिक थकान होने के कारण विश्राम के लिए क्षीरसागर मे सो गये थे। उनका शयन चार मास पर्यन्त कार्तिक शुक्ल एकादशी तक रहा। इस दिन (कार्तिक एकादशी को) उन्हें व्रतोपवास, अर्चन, दानादिक क्रियायों से जगाया जाता है। इस दिन के व्रतोपवास को अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। यदि पूर्ण उपवास सम्भव न हो तो एक समय फलाहार किया जा सकता है।
------व्रत विधि- ------
इस दिन प्रातः काल स्नान से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का षोडषोपचार विधि से पूजन करें। आंगन में भगवान विष्णु चरण चिह्न बनायें। दोपहर को उन्हे धूप से बचाने के वस्त्र ओढ़ायें। रात्रि में पुनः पूजन कर भगवान को सुलाने के बाद श्रद्धा से उन्हे जगायें। रामार्चन चन्द्रिका ग्रन्थ के अनुसार शंख, घंटियां आदि बजाकर उन्हे उठायें। पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को अत्यन्त श्रद्धा और भक्ति से युक्त होकर मन्त्रोच्चार से भगवान नारायण को जाग्रत करें। वराहपुराण के अनुसार भगवान को जगाने के लिए कहे "ब्रह्मा, इन्द्र, अग्नि, कुबेर सूर्य, सोम आदि के नमस्कार करने योग्यों के लिए प्रणाम करने योग्य, हे देवेश! हे जगत के निवास! हे देवाधिदेव! मन्त्र के प्रभाव से जागिये "। साथ ही गोविंद से प्रार्थना करें "हे गोविन्द उठो, उठो, हे जगत्पते! निद्रा को त्यागो, हे जगत्पति! आपके शयन से यह जगत सो जाता और आपके उठने से जाग जाता, इसीलिए हे माधव! उठो, मेघ चले गये हैं। आकाश और दिशाएं निर्मल हो हो गयी हैं। हे केशव मेरे लिए शरद ऋतु के फूलों को स्वीकार करो।
इस दिन दान और अर्घ्य का महत्व
ब्रहमा जी ने देवर्षि नारद को इस दिन का माहात्म्य बताते हुए कहा है कि इस दिन किये गये दान का कई गुना फल मिलता है। साथ ही रात्रि जागरण के समय शंख में जल और फल तथा अनेक प्रकार के द्रव्य लेकर भगवान जनार्दन को अर्घ्य देना चाहिए, इससे करोड़ गुना पुण्य अर्जित होता है ।
व्रत कथा
प्राचीनकाल में एक राजा था। वह सभी एकादशियों का व्रत रखता था। प्रजा भी उसकी भाॅति एकादशी व्रत करती थी। भगवान विष्णु ने एक बार उस राजा की परीक्षा लेने का निश्चय किया। वे मोहिनी के रूप में राजा के समक्ष पहुंच गये। राजा ने जब विवाह का प्रस्ताव रखा तो मोहिनी ने कहा "खान-पान एवं राजपाट के सम्बन्ध में मेरा आदेश मानना पड़ेगा। यदि नही मानोगे तो अपने पुत्र का सिर काट लेना होगा। " राजा ने मोहिनी की शर्त स्वीकार कर ली और उन दोनो का विवाह हो गया। अगले दिन एकादशी थी। मोहिनी ने राजा के लिए मांसाहारी भोजन बनवाया और कही इसे आपको खाना होगा। राजा ने कहा "मेरा तो आज एकादशी का व्रत है, मै तो नही खा सकता। " तब मोहिनी ने कहा " आपको अपने शर्तानुसार यह भोजन ग्रहण करना होगा अथवा अपने पुत्र का सिर काटकर देना होगा। " राजा ने पुत्र से उपर धर्म को माना और शीश काटने के लिए उद्यत हुआ। इस पर भगवान नारायण प्रकट हो गये और राजा को परमधाम प्रदान किया।
-आचार्य पं. शरद चंद्र मिश्र
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