मूल प्रकृति और बह्म दोनो के संयुक्त पूजा का पर्व है सूर्य षष्ठी व्रत
शिशुओं के संरक्षण एवं सम्वर्धन से सम्बन्धित देवी हैं षष्ठी माता ।इनकी पूजा षष्ठी तिथि को होती है ।चाहें वह बच्चों के जन्मोपरान्त छठा दिन हो या प्रत्येक चन्द्र मास की षष्ठी ।पुराणों में इन्ही देवी का नाम 'कात्यायनी 'भी मिलता है ,जिनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है। ब्रह्म पुराण में वर्णित आख्यान में षष्ठी देवी का माहात्म्य, पूजन विधि एवं पृथ्वी पर इनकी पूजा का प्रसार आदि विषयों पर सम्यक ज्ञान प्राप्त होता है। परंतु सूर्य के साथ षष्ठी पूजन का विधान तथा सूर्य षष्ठी नाम से पर्व के रूप में इसकी ख्याति कब हुई? यह विचारणीय विषय है ।भविष्यपुराण में प्रति माह के तिथि व्रतों के साथ षष्ठी व्रत का उल्लेख मिलता है ।यहाॅ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी का उल्लेख स्कन्द षष्ठी के नाम से किया गया है, किन्तु इस व्रत के विधान में और प्रचलित सूर्य षष्ठी के विधान में पर्याप्त अन्तर है ।मैथिल ग्रन्थ "वर्ष कृत्य विधि "में प्रतिहार षष्ठी के नाम से प्रसिद्ध "सूर्य षष्ठी "व्रत की चर्चा की गई है ।इस ग्रन्थ में व्रत, पूजन की विधि, कथा तथा फलश्रुति के साथ ही तिथियों के क्षय एवं वृद्धि की दशा में कौन तिथि ग्राह्य है, इस विषय पर भी धर्मशास्त्रीय दृष्टि से सांगोपांग चर्चा की गई है और अनेक स्मृति ग्रन्थों से प्रमाण भी दिये गये हैं ।वर्तमान समय में इस व्रत के अवसर पर जिन परम्परागत नियमों का अनुपालन किया जाता है,उनमें इसी ग्रन्थ का सर्वथा अनुसरण दृष्टिगत होता है ।कथा के अन्त में "इति श्री स्कन्द पुराणोक्त प्रतिहार षष्ठी व्रत कथा समाप्ता "लिखा है ।इससे ज्ञान होता है कि स्कन्द पुराण के संस्करण में इस व्रत का उल्लेख है ।इससे इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता परिलक्षित होती है।
प्रतिहार का अर्थ है- जादू या चमत्कार अर्थात चमत्कारिक रूप से अभीष्टों को प्रदान करने वाला व्रत ।इस ग्रन्थ में षष्ठी व्रत की कथा अन्य पौराणिक कथाओं की तरह वर्णित है ।--नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों के प्रश्न करने इस व्रत के माहात्म्य, विधि तथा कथा पर सूत जी उपदेश करते हैं ।यहाॅ उक्त कथा के अनुसार एक राजा है जो कुष्ठ रोग से ग्रसित है और राज्यविहीन भी ।किसी विद्वान ब्राह्मण के कहने पर इस व्रत को करते हैं, जिसके फलस्वरूप वे रोगमुक्त होकर पुनः राज्यारूढ़ और समृद्ध हो जाते हैं ।पंचमी युक्त षष्ठी का इस ग्रन्थ में निषेध किया गया है।
स्कन्द पुराण में" नागविद्धा न कर्तव्या षष्ठी चैव कदाचन् ।" इसके प्रमाण स्वरूप राजा सगर की कथा का उल्लेख किया गया है। राजा सगर ने एक बार पंचमी युक्त षष्ठी व्रत किया था, जिसके फलस्वरूप कपिल मुनि के शाप से उनके सभी पुत्रों का विनाश हो गया ।इस दृष्टांत से इस व्रत की प्राचीनता भी प्रमाणित होता है। चतुर्थी को नहाय- खाय "प्राचीन ग्रन्थों में नही है, कालान्तर में लोकधर्म के अनुसार इसका समावेश हुआ है, सम्भवतः शारीरिक और मानसिक शुद्धि (व्रत के पूर्व) के आधार पर इसे मान्यता प्राप्त हुआ हो।
Comments