सांसारिक बंधनों के बीच भी तटस्थ रहे योगेश्वर 

 


भारतीय संस्कृति में श्रीराम और श्रीकृष्ण महानायक हैं श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। तो श्रीकृष्ण योगेश्वर। श्रीकृष्ण व्यक्ति नहीं वरन सद्प्रवृत्तियों में हमारे सम्मुख हैं। वे हर विपरीत घड़ी में हमारे सामने आदर्श के रूप में उपस्थित होते हैं।



श्रीराम का चरित्र अनुपम है तो श्रीकृष्ण की लीलाएं। राम मर्यादित आचरण करते हुए देवत्व तक पहुंचे तो श्रीकृष्ण संसार के बीच रहते हुए उनसे तटस्थ रहकर पूर्ण पुरुष कहलाए। श्रीराम और श्रीकष्ण के बीच अंतर कहलाए। श्रीराम और श्रीकृष्ण के बीच अंतर यही है कि जहां श्रीराम ने नए आदर्श प्रतिस्थापित करने के लिए अपना जीवन, भी वे नहीं दी थेअपन उन्होंने भावनाओं, संबंधों को दांव पर लगाया तो श्रीकृष्ण ने धर्म की रक्षा और दुष्टों के नाश हेतु आदशों को परे रखते हुए कर्म को प्रधानता दी। महाभारत के युद्ध में जीत का श्रेय उन्होंने अर्जुन और भीम को दिया वहीं प्रत्येक स्त्री को उसके प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग का श्रेय देने से भी वे नहीं चूके, जबकि इस पूरे युद्ध के महानायक श्रीकृष्ण ही थे। अपने मित्र सुदामा के आत्मसम्मान को ठेस पहंचाए बिना ही उन्होंने उसके मन की बात जान ली थी। - वे प्रमाण के साथ दूसरों को सबक भी सिखा देते थे। जब बहन सुभद्रा ने द्रौपदी के प्रति उनके विशेष लगाव की बात की तो बात के पीछे छिपे ईष्याभाव की गहराई को वे समझ गए। उन्होंने सुभद्रा को सीख देने का विचार तब कर लिया था।एक मौके पर जब सुभद्रा और द्रौपदी की मौजदगी में श्रीकष्ण की उंगली में छोटा-सा घाव हो गया तो पट्टी के लिए कपड़े का टुकड़ा तलाशते सभद्रा इधर-उधर देखने लगी जबकि द्रौपदी ने पलभर का विलंब किए बगैर पहनी हुई बेशकीमती साड़ी का पल्लू फाड़ घाव पर बांध दिया। इसी के वशीभूत होकर श्रीकृष्ण ने भरी सभा में द्रौपदी की लाज बचाई। कृष्ण बहुत थोड़े से प्रेम में बंध जाते हैं। श्रीकृष्ण ने भगवदगीता में भगवत प्राप्ति के तीन योग बताए हैं कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग। इनमें भक्तियोग उन्हें सर्वाधिक प्रिय है। जो उन तक पहुंचने का सबसे सरल मार्ग है।


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