बेहद रोचक है उत्तर प्रदेश का इतिहास

परतंत्र काल से स्वतंत्र काल तक बदले नाम बदली राजधानी



उत्तर प्रदेश के इतिहास को जानने वाले इसके जन्म की रोचक गाथा बताते हैं। मुगलकाल के दौरान देश में अलग-अलग राजाओं के राज्य थे। मुगलों ने आक्रमण कर इन पर अपना कब्जा किया। इन राज्यों या सूबों में अलग-अलग शासक थे जो मुगल बादशाह के अधीन थे। अकबर ने जब राज्य संभाला तो कुछ वर्षों के लिए आगरा के पास फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया। फिर प्रयागराज का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया और 1583 में इसे अपनी राजधानी बना लिया।
इतिहास के जानकार बताते हैं कि नवाबों के काल में अवध के नवाब सआदत अली खां ने अयोध्या को अपना निवास बनाया और फैजाबाद नाम के एक नए शहर का गठन कर उसे अवध की राजधानी घोषित कर दिया। इसके बाद अंग्रेज आए और उन्होंने सत्ता पर कब्जा किया तो राज्यों का पुनर्गठन करते हुए संयुक्त प्रांत आगरा-अवध करते हुए इलाहाबाद को फिर राजधानी कर दिया।



वर्ष 1834 तक तो इलाहाबाद ही राजधानी रही, लेकिन 1834 में आगरा राजधानी कर दिया गया और प्रांत का नाम उत्तर-पश्चिम प्रांत कर दिया। पर, 1858 में तत्कालीन वायसराय लार्ड कैनिंग ने इलाहाबाद को फिर राजधानी बना दिया। इसी के साथ 1877 में प्रांत का नाम संयुक्त प्रांत आगरा एवं अवध कर दिया। पर, स्वाधीनता की लड़ाई के दौरान जब भारतवासियों के सघर्ष के सामने झुकते हुए अंग्रेजों ने सशर्त सरकार बनाने पर सहमति दी तो राज्य का नाम संयुक्त प्रांत कर दिया। वर्ष 1921 तक इलाहाबाद ही राजधानी रही लेकिन 1921 में लखनऊ को राजधानी बना दिया गया।
...और संयुक्त प्रांत से नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया
वर्ष 1950 की 24 जनवरी को संयुक्त प्रांत से उत्तर प्रदेश नाम हुआ और बाद में पुनर्गठन कर उत्तर प्रदेश का मौजूदा स्वरूप तय किया गया। पर, वर्ष 1957 में योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष टीटी कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 12 मई 1970 में पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान की जिम्मेदारी राज्य तथा केंद्र सरकार की होने की घोषणा की। इसी के बाद 1979 में पृथक राज्य के गठन के लिए उत्तराखंड क्रांति दल बनाया गया। संघर्ष चलता रहा और नवंबर 1987 में पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए दिल्ली में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन दिए गए। वर्ष 1994 में अलग राज्य के लिए उत्तराखंड के छात्रों ने सामूहिक रूप से आंदोलन शुरू कर दिया परए मुलायम सिंह यादव के तेवरों से आंदोलन उग्र हो गया। अनशन हुए, तीन महीने से ज्यादा हड़ताल चली, उत्तराखंड में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की घटनाएं हुई। मुलायम सरकार में ही मसूरी व खटीमा में पुलिस ने गोलियां चलाई। कई लोग घायल हुए। दिल्ली में प्रदर्शन के लिए जाते हुए आंदोलनकारियों व पुलिस के बीच मुजफ्फरनगर में संघर्ष हुआए कई लोग मारे गए। महिलाओं के साथ दुराचार और अभद्रता के आरोप भी लगे। यह संघर्ष रामपुर तिराहा कांड से चर्चित हुआ।
50 साल बाद हुआ था यूपी का पहला विभाजन
रामपुर तिराहा कांड के बाद आंदोलन और तेज हो गया। चुनाव आए तो भाजपा ने उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने का वादा किया और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेज दिया। इसके फलस्वरूप 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से 13 जिलों को काटकर उत्तरांखड बनाया गया। पहले इसका नाम उत्तरांचल फिर उत्तराखंड कर दिया गया। उत्तर प्रदेश से लोकसभा की पांच सीटें भी उत्तराखंड में दी गई। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में 85 की जगह लोकसभा की 80 ही सीटें रह गईं।


उत्तर प्रदेश के 70 वर्षों के सफर में कई ऐसे बदलाव हुए जिन्होंने कुछ प्रमुख शहरों और नदियों को इतिहास का हिस्सा बना दिया। उदाहरण के लिए जो इलाहाबाद लंबे वक्त तक प्रदेश की राजधानी रहा उसका नाम अब बदल चुका है। अब वह अकबर से पहले के नाम अर्थात प्रयागराज नाम से जाना जाएगा। जिस फैजाबाद को सआदतअली खां ने अवध की राजधानी बनाया थाए यह नाम भी बीते दिनों की बात बन गया। अब यह अयोध्या नाम से जाना जाएगा। यही नहीं जिस उत्तर प्रदेश में प्रमुख नदियों में अब तक घाघरा को भी पढ़ा जाता था उसे अब सरयू नाम से भावी पीढ़ी जानेगी।


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