धरोहर बनी पहचान

गोरखपुर का नाम बाबा गोरखनाथ के नाम पर रखा गया है। गोरखनाथ मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ गोरखनाथ हठ योग का अभ्यास करने के लिये आत्म नियन्त्रण के विकास पर विशेष बल दिया करते थे और वर्षानुवर्ष एक ही मुद्रा में धूनी रमाये तपस्या किया करते थे। गोरखनाथ मन्दिर में आज भी वह धूनी की आग अनन्त काल से अनवरत सुलगती हुई चली आ रही है। यहां का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था परन्तु आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है।



गोरखपुर में ना पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय ब्रिटिश काल में बंगाल नागपुर रेलवे के रूप में जाना जाता था। यहां रेलवे स्टेशन के प्लटफार्म को एशिया का सबसे लम्बा प्लेटफार्म होने का गौरव प्राप्त है। यहां संस्कृति का सबसे बड़ा भाग लोक-गीतों और लोक-नृत्यों की परम्परा है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में गोरखपुर पर्यटन परिक्षेत्र एक विस्तृत भू-भाग में है। इसके अंतर्गत गोरखपुर, बस्ती एवं आजमगढ़ मण्डल के कई जनपद हैं। अनेक पुरातात्विक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों को समेटे हुए इस परिक्षेत्र की विशिष्ट परम्पराएं हैं। सरयू, राप्ती, गंगा, गण्डक, तमसा, रोहिणी जैसी पावन नदियों के वरदान से अभिसंचित, भगवान बुद्ध, तीर्थकर महावीर, संत कबीर, गुरु गोरखनाथ की तपःस्थली, सर्वधर्म-सम्भाव के संदेश देने वाले विभिन्न धर्मावलम्बियों के देवालयों और प्रकृति द्वारा सजाये-संवारे नयनाभिराम पक्षी-विहार एवं अभ्यारण्यों से परिपूर्ण यह क्षेत्र पर्यटकों का आकर्षण-केन्द्र है। पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छठी शताब्दी में विद्यमान थे, यह उन्ही राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। प्राचीन समय में गोरखपुर के भौगोलिक क्षेत्र मे बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़ आदि जिले शामिल थे। गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का संगम होता है। गोरखपुर 1803 में सीधे ब्रिटिश नियन्त्रण में आया। यह 1857 के विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में रहा और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसने एक प्रमुख भूमिका निभायी। गोरखपुर जिला चौरीचौरा की 4 फरवरी 1922 की घटना भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई।


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