सूर्य ऐसे देवता हैं जो प्रतिदिन 'दर्शन' देते हैं। इसकी उपासना का ही पर्व है मकर संक्राति। जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, तभी वह दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। तब सूर्य की किरणें एक विशेष कोण से पृथ्वी पर पड़ती हैं। इस विशेष कोण का ही प्रभाव होता है कि उन किरणों में दिव्य गुण होते हैं। इसी दिन मनाई जाती हैमकर संक्रांति'। उन दिव्य रश्मियों (किरणों) के प्रभाव से नदी आदि के जल में एक विशेष गुण पैदा होना बताया जाता है। इस जल में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हुए 'सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया' की कामना की जाती है। संपूर्ण भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
15 जनवरी को मनेगी मकर संक्रांति
मकर संक्रांति 15 जनवरी बुधवार को मनायी जायेगी। गोरखनाथ मंदिर के पुरोहित आचार्य पं. रामानुज त्रिपाठी के अनुसार कृष्ण पक्ष पञ्चमी बुधवार को ही भगवान भास्कर का राशि परिवर्तन होगा। वे धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मकर राशि में पहुंचने पर मकर संक्रांति मनाने की परंपरा है। मकर संक्रांति पर गंगास्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इसके साथ ही माघ स्नान की भी शुरुआत हो जाएगी। सनातन धर्म में मकर संक्रांति की काफी महत्ता है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भीष्म पितामह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाएंगे और खरमास समाप्त हो जाएगा। प्रयाग में कल्पवास भी मकर संक्रांति से शुरू होगी
सूर्यदेव की उपासना को समर्पित है मकर संक्रांति
गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुरोहित वेदाचार्य पंडित रामानुज त्रिपाठी के मुताबिक नए वर्ष में सोमवार 14 जनवरी की मध्य रात्रि में सूर्य का मकर में संक्रमण होगा। जबकि बुुधवार 15 जनवरी को 12 बजे से पुण्यकाल है। इस लिहाज से बुधवार की सुबह से ही संक्रांति जायेगा। कहा गया है कि सूर्यास्त से पहले सूर्य का संक्रमण स्नान, दान शुरू हो जायेगा। कहा गया है कि सूर्यास्त से पहले सूर्य का संक्रमण हो तो उसी तिथि व दिन मकर संक्रांति मनाना शास्त्रसम्मत है। इसी तिथि पर स्नान, दान, तिल ग्रहण, कंबल दान करना अति शुभ है। वेदाचार्य ने बनारसी पंचांगों के हवाले से बताया कि 14 जनवरी की रात मध्य रात्रि के बाद सूर्य का संक्रमण होने से बुुधवार को ही मकर संक्रांति मनाना शास्त्र सम्मत है। उनके अनुसार इसके पूर्व में भी 12 और 13 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जाती रही है। स्वमी विवेकानंद के जन्म पर 12 जनवरी को मकर संक्रांति मनी थी। आने वाले 70 वर्षों में 16-17 जनवरी को भी मकर संक्रांति होगी।
ज्योतिषाचार्य शरदचंद मिश्र के अनुसार मकर के स्वामी शनि और सूर्य के विरोधी राहू होने के कारण दोनों के विपरीत फल के निवारण के लिए तिल का खास प्रयोग किया जाता हैउत्तरायण में सूर्य की रोशनी में और प्रखरता आ जाती है। तिल से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक उपलब्धियां हासिल होती हैं। तिल विष्णु को प्रिय है और यह गर्म भी होता है। तिल के दान और खिचड़ी खाने से विष्णु पद की प्राप्ति होती हैपौष मास में हर रविवार तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अध्य देना चाहिए। इस मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह उपवास सफलता दिलाने वाला माना जाता है। पौष अमावस्या का भी बहुत महत्व माना जाता है। पितृदोष, कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए इस दिन उपवास रखने के साथ विशेष पूजा की जाती है। पौष मास में शुक्ल एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से व्रती को संतान सुख प्राप्त होता है। पौष पूर्णिमा को धार्मिक कार्यों, भजन-कीर्तन के साथ स्नान-दान के लिए शुभ माना जाता है। इस माह नमक का सेवन कम से कम करें। नववर्ष का आगमन लगभग हर साल पौष मास में होता है। मान्यता है कि इस मास में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए क्योंकि उनका शुभ फल नहीं मिलता।
आचार्य भरत मिश्र काशी के अनुसार मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही महर्षि प्रवहण को प्रयाग के तट पर गंगा स्नान से सूर्य भगवान से पांच अमृत तत्वों की प्राप्ति हुई थी। ये तत्व हैं-अन्नमय कोष की वृद्धि, प्राण तत्व की वृद्धि, मनोमय तत्व यानी इंद्रीय को वश में करने की शक्ति में वृद्धि, अमृत रस की वृद्धि यानी पुरुषार्थ की वृद्धि, विज्ञानमय कोष की वृद्धि यानी तेजस्विता और भगवत प्राप्ति का आनंद।
आचार्य राजेश मिश्र के मुताबिक सूर्य मकर से मिथुन राशि तक उत्तरायण में और कर्क से धनु राशि तक दक्षिणायण रहते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायण को देवताओं का रात्रि कहा जाता है। भीष्म ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष के दसवें माह को पौष माह कहा जाता है। इस माह में सूर्य उपासना का विशेष महत्व है। इस मास में सूर्यदेव की उपासना भग नाम से की जाती है। पौष माह में सूर्यदेव धनु राशि में रहते हैं। इस माह में प्रत्येक रविवार को सूर्यदेव को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है।
पर्व एक परंपराएं अनेक
प्रमुख पर्व मकर संक्रांति अलग-अलग राज्यों, शहरों और गांवों में वहां की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है. इसी दिन गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ का पहला शाही स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।
उत्तर प्रदेश : मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।
गुजरात व राजस्थान : उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है। आंध्रप्रदेश : संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।
तमिनाडु: किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।
महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।
पश्चिम बंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।
असम : भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है। पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है।
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