क्या है गुप्त नवरात्र !

दस महाविद्या की साधना 


गुप्त नवरात्र के दिनों में तांत्रिक साधनाएं की जाती हैं। इस नवरात्रि में खास साधक ही साधना करते हैं। गुप्त नवरात्रि में की जाने वाली साधना को गुप्त रखा जाता है। इस साधना से देवी जल्दी प्रसन्न होती है। चैत्र और शारदीय नवरात्र की तुलना में गुप्त नवरात्र में देवी की साधाना ज्यादा कठिन होती है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इन नवरात्र में मानसिक पूजा का महत्व है। वाचन गुप्त होता है। लेकिन सतर्कता भी आवश्यक है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि गुप्त नवरात्र केवल तांत्रिक विद्या के लिए ही होते हैं। इनको कोई भी कर सकता है लेकिन थोड़ी सतर्कता रखनी आवश्यक है। दश महाविद्या की पूजा सरल नहीं।



देवी भगवती के भी दो कुल


जिस प्रकार भगवान शंकर के दो रूप हैं एक रुद्र (काल-महाकाल) और दूसरे शिव, उसी प्रकार देवी भगवती के भी दो कुल हैं। एक काली कुल और श्री कुल। काली कुल उग्रता का प्रतीक है। काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी हैं। यह स्वभाव से उग्र हैं। श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला हैं। धूमावती को छोड़कर सभी सौंदर्य की प्रतीक हैं।


श्री दुर्गा सप्तशती में कवच, अर्गला स्तोत्र और कीलक पढ़कर ही अध्याय का पाठ होता है। कीलकम् विशेष है। कीलकम् में कहा जाता है कि भगवान शंकर ने बहुत सी विद्याओं को गुप्त कर दिया। यह विद्या कौन सी हैंप्रसंग सती का है। भगवान शंकर की पत्नी सती ने जिद की कि वह अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां अवश्य जाएंगी। प्रजापति ने यज्ञ में न सती को बुलाया और न अपने दामाद भगवान शंकर को। शंकर जी ने कहा कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाते हैं लेकिन सती जिद पर अड़ गई। सती ने उस समय अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन किया। उन्होंने सती से पूछा- कौन हैं ये। सती ने बताया कि ये मेरे दस रूप हैं। सामने काली हैं। नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरीपश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोडशी हैं। मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देती हूं। इन्हीं दस महाविद्याओं के साथ देवी भगवती ने असुरों के साथ संग्राम भी किया। चंड-मुंड और शुम्भ-निशुम्भ वध के समय देवी की यही दश महाविद्या युद्ध करती रहीं। दश महाविद्या की आराधना अपने आंतरिक गुणों और आंतरिक शक्तियों के विकास के लिए की जाती है। यदि अकारण भय सताता हो, शत्रु परेशान करते हों, धर्म और आध्यात्म में मार्ग प्रशस्त करना हो, विद्याबुद्धि और विवेक का परस्पर समन्वय नहीं कर पाते हों, उनके लिए दश महाविद्या की पूजा विशेष फलदायी है।


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