संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत 13 जनवरी दिन सोमवार को
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत 13 जनवरी दिन सोमवार को मनाया जायेगा। इस दिन सूर्योदय 6:43 बजे और तृतीया तिथि का मान पूर्व दिन से प्रारंभ होकर रात्रि में 8 बजकर 6 मिनट तक के पश्चात चतुर्थी तिथि लग रहा है। श्लेषा नक्षत्र दिन में 12 बजकर 25 मिनट के पश्चात मघा नक्षत्र लगेगा। आयुष्मान योग प्रातः 7 बजकर 9 मिनट के पश्चात सौभाग्य योग और सौम्य नामक महाऔदायिक योग भी है। चन्द्रमा अपने स्वराशि और मित्र सूर्य की राशि पर संचरण करेगा।
चन्द्रोदय रात्रि 8 बजकर 14 मिनट पर
चतुर्थी तिथि के समयद्ध होने से संकष्टी गणेश चतुर्थी के लिए यही तिथि दिन मान्य है।
भविष्यपुराण में कहा गया है कि मनुष्य जब भारी संकट में हो, संकटों और मुसीबतों से घिरा महसूस करे या निकट भविष्य में किसी अनिष्ट की आशंका हो तो उसे संकष्टी चतुर्थी व्रत करना चाहिए। उसे लोक और परलोक दोनो का सुख मिलता है। इस व्रत को करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरूषार्थो की प्राप्ति होती है। मनुष्य वांछित फल प्राप्त कर गणपति को प्राप्त हो जाता है। यहॉ तक कि इस व्रत को करने से विद्यार्थी को विद्या और रोगी को आरोग्यता की प्राप्ति होती है। ऐसी लोकमान्यता है कि इस दिन गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी, इसे तिलकुटी एवं वक्रतुण्डी चतुर्थी भी कहा जाता है। पुत्र की दीर्घायु की कामना से यह व्रत महिलाओं द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
पूजन विधि-विधान
आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार इस दिन स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत्त होने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करके दाहिने हाथ में पुष्प, गन्ध, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें कि विद्या, धन, पुत्र. पौत्रादि के समस्त रोगों की मुक्ति और समस्त संकटों से छुटकारों के लिए यह व्रत किया जाता है। व्रती को चाहिए की संकल्प लेते हुए कहें कि हे भगवान गणेश मैं आपके प्रसन्नता के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत करता हूँ। संकल्प के बाद दिन भर मौन एवं उपवास रखकर भगवान गणेश का चिन्तन एवं उपवास स्वामी गणेश जी का चिन्तन एवं मनन करें। पुनः गणेश जी की मूर्ति को एक पाटे पर वस्त्र बिछाकर सायंकाल स्थापित करें और विधि पूर्वक धूप, दीप, गन्ध, पुष्प अक्षत, रोली, नैवेद्य, फल एवं दक्षिणा आदि से षोडषोपचार पूजन करें। पूजन के अन्त में 21 तिल के लड्डुओं का भोग लगायें। उसमें 5 लड्डू गणेश जी के सम्मुख रखकर। शेष गणेश भक्तों में वितरण कर दें। इस व्रत में तिल के लड्डूओं के साथ शकरकन्द (गन्जी) को भी अर्पण किया जाता है। गणेश जी पृथ्वी तत्व के देवता हैं। इनका आधार मूलाधार चक्र में है, अतः पृथ्वी के गर्भ में स्थित मधुर कन्दमूल से इनका गहरा लगाव है, इसलिए गणेश जी की प्रीति के लिए शकरकंद अर्पण किया जाता है। रात में चन्द्रोदय होने पर यथा विधि चन्द्रमा का पूजन कर क्षीरसागर आदि मन्त्रों या. .ऊॅ गणेशाय नमः. इदमर्घ्यं समर्पयामि... से अर्घ्य प्रदान करें। अर्घ्य में श्वेत चन्दन का चूर्ण, जल, श्वेत पुष्प का प्रयोग करें। भविष्यपुराण के अनुसार तिथि की अधिष्ठात्री देवी एवं रोहिणी पति चन्द्रमा को चन्द्रोदय काल में गणेश जी के लिए तीन, तिथि के लिए तीन और चन्द्रमा के लिए सात अर्घ्य प्रदान करें। फिर आचमनए प्रणाम और परिक्रमा के अनन्तर गणेश मन्त्र या गणेश गायत्री का जप करें। महोल्काय विद्ममहे वक्रतुण्डाय धीमहिए तन्नो दन्ती प्रचोदयात्। यथा संख्या जप करें, या गणेश चालीसा का ही पाठ करें। गणेश कोष के अनुसार इस पुण्यमय तिथि के दिन पूजन- अर्चन, दान और हवन आदि शुभ कर्म आदिपर्व गजवदन की कृपा से सहस्त्र गुना फलदायी हो जाता है।
अर्घ्य का समय
इस दिन रात में 8 बजकर 14 मिनट पर चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य प्रदान करें।
व्रत कथा
सतयुग में नल नामक राजा थे जिसकी दमयन्ती नाम की रूपवती पत्नी थी। जब नल पर संकट आया तो उसके महल आग से जल गया। सब कुछ खोने के बाद राजा नल को अपनी पत्नी के साथ जगह. जगह भटकना पड़ा। इस संकट के बीच राजा अपनी पत्नी से अलग हो गया। इस प्रकार कष्ट पाती हुई दमयन्ती ऋषि शरभंग के आश्रम में गयी और अपने दुःख की कथा सुनाई। यह ऋषि ने संकष्टी व्रत के माहात्म्य और विधि. विधान को बताया। इस व्रत को दमयन्ती ने किया और अपने खोये राज्यए पति. पुत्र को प्राप्त की। कहा जाता है कि तभी से इस व्रत की परिपाटी चली आ रही है।
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