त्रेता युग से जल रही अखंड ज्योति


पिछले अंक में कभी नहीं भरता खप्पर शीर्षक से प्रकाशित कथा में बताया गया था कि किस तरह से शिवावतार महायोगी गोरखनाथ ज्वाला देवी के स्थान से भिक्षा में रिवचड़ी मांगते हुए अवध क्षेत्र (गोरखपुर) पहुंचे और यहीं पर समाधि ले ली। भिक्षा के लिए रखे उनके खप्पर में श्रद्धालु रिवचड़ी चढ़ाते रहे लेकिन बाबा का खप्पर कभी भरा नहीं। कहा जाता है कि यहीं से बाबा को रिवचड़ी चढ़ाने की परम्परा आरंभ हुई। इस अंक में हम शिवावतार बाबा गोरखनाथ के व्यक्तित्व के साथ-साथ गोरखनाथ मंदिर और मकर संक्रांति के बीच अनन्य संबंध के बारे में बता रहे हैं। महायोगी गोरखनाथ जी का कृतित्व और व्यक्तित्व युगान्तरकारी था। उनके आध्यात्मिक प्रभाव से जहां योग साधना में सदाचार, संयम और नैतिकता का पुनः प्रभाव बढ़ा वहीं सभी जातियों और वर्णों के भेद-भाव भी मिटा इसके साथ ही सभी के लिये योग साधना सुलभ हो गयी। समाजिक और सांस्कृतिक एकता के ऐसे उन्नायक ध्वजवाही सन्त गुरु गोरखनाथ जी और उनके अनुयायी सन्तों के लोक संग्रही कायों के कारण जहां सारे देश में गोरखनाथ जी और अन्य नाथ सिद्धों से सम्बन्धित मठ-मन्दिर और धूने बने, वहीं विभिन्न काल खण्डों में अमरकाय अयोनिज महायोगी गोरखनाथ जी के प्राकट्य और प्रभाव का भी वर्णन इतिहास एंव धर्म ग्रन्थों में देखने को मिलता है।


अरवण्ड ज्योति


मंदिर में महायोगी गुरु गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गयी अखण्ड ज्योति त्रेता युग से आज तक अनवरत अनेक झंझावातों एवं प्रलयकारी आपत्तियों के थपेड़े खाकर भी अखण्ड रूप से जल रही है। गोरखनाथ मंदिर के अन्तर्वर्ती भाग में कुछ देव मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मन्दिर के दक्षिण द्वार के पूर्व में भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थपित है। इनको भारतीय संस्कृति में विघ्न विनाशक के रूप में तथा सांसारिक वैभव, शान्ति तथा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की सिद्धियों का दाता माना जाता है। मंदिर में पश्चिमोत्तर कोण में भगवान शिव के वक्षस्थल पर नृत्य करती हुई काली माता की मूर्ति है। इन्हे ही महामाया काली कहते हैं। मंदिर की उत्तर दिशा में काल भैरव जी की मूर्ति स्थापित है उन्हें भगवान शंकर, माता दुर्गा तथा श्रीराम के दूत महाबली हनुमान जी और राधा- कृष्ण के मंदिर भी दर्शनीय हैं। मंदिर के पास में ही महायोगी श्री गोरखनाथ जी द्वारा प्रज्वलित अखण्ड धुना निरन्तर प्रज्वलित है। 


Comments