महायोगी गोरखनाथ जी का कृतित्व और व्यक्तित्व युगान्तरकारी था। उनके आध्यात्मिक प्रभाव से जहां योग साधना में सदाचार, संयम और नैतिकता का पुनः प्रभाव बढ़ा वहीं सभी जातियों और वर्णों के भेद-भाव भी मिटा इसके साथ ही सभी के लिये योग साधना सुलभ हो गयी। समाजिक और सांस्कृतिक एकता के ऐसे उन्नायक ध्वजवाही सन्त गुरु गोरखनाथ जी और उनके अनुयायी सन्तों के लोक संग्रही कायों के कारण जहां सारे देश में गोरखनाथ जी और अन्य नाथ सिद्धों से सम्बन्धित मठ-मन्दिर और धूने बने, वहीं विभिन्न काल खण्डों में अमरकाय अयोनिज महायोगी गोरखनाथ जी के प्राकट्य और प्रभाव का भी वर्णन इतिहास एंव धर्म ग्रन्थों में देखने को मिलता है।
अरवण्ड ज्योति
मंदिर में महायोगी गुरु गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गयी अखण्ड ज्योति त्रेता युग से आज तक अनवरत अनेक झंझावातों एवं प्रलयकारी आपत्तियों के थपेड़े खाकर भी अखण्ड रूप से जल रही है। गोरखनाथ मंदिर के अन्तर्वर्ती भाग में कुछ देव मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। मन्दिर के दक्षिण द्वार के पूर्व में भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थपित है। इनको भारतीय संस्कृति में विघ्न विनाशक के रूप में तथा सांसारिक वैभव, शान्ति तथा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की सिद्धियों का दाता माना जाता है। मंदिर में पश्चिमोत्तर कोण में भगवान शिव के वक्षस्थल पर नृत्य करती हुई काली माता की मूर्ति है। इन्हे ही महामाया काली कहते हैं। मंदिर की उत्तर दिशा में काल भैरव जी की मूर्ति स्थापित है उन्हें भगवान शंकर, माता दुर्गा तथा श्रीराम के दूत महाबली हनुमान जी और राधा- कृष्ण के मंदिर भी दर्शनीय हैं। मंदिर के पास में ही महायोगी श्री गोरखनाथ जी द्वारा प्रज्वलित अखण्ड धुना निरन्तर प्रज्वलित है।
नेपाल की राजमुद्रा में अंकित है नाम
पड़ोस के हिन्दू राष्ट्र नेपाल का शाह राजवंश गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से ही अस्तित्व में आया। इसके संस्थापक राजा पृथ्वीनारायण शाह गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से ही बाईसी और चौबीसी के नाम से नाम से विभक्त 46 छोटी-छोटी रियासतों का एकीकरण कर वर्तमान नेपाल राष्ट्र का निर्माण करने में समर्थ हुये। श्री नाथ जी की इसी कृपा की स्मृति में नेपाल में राजमुद्रा में और राजमुकुट में गोरखनाथ जी का नाम और उनकी चरण पादुका अंकित रहती है|
कई देशों में है प्रभाव
आठवीं शताब्दी में मेवाड़ में एक महान राजवंश की स्थापना करने वाले वीर बप्पा रावल को वरदानी खड्ग प्रदान कर महायोगी गुरु गोरखनाथ जी ने अकल्पनीय विजयश्री दिलायी थी। वीर विक्रमादित्य के बड़े भाई भर्तृहरि को योग दीक्षा देकर महायोगी बनाने का श्रेय भी गुरु गोरखनाथ जी को ही हैं। बंगाल की रानी मैनावती औरराजा गोपीचन्द को भी योग दीक्षा देकर यश प्रदान करने का श्रेय गुरु गोरखनाथ जी को है। गुरु गोरखनाथ जी का प्रभाव केवल शुभकामनाएं भारत ही नहीं पार्श्ववर्ती वर्मा, सिंहल, तिब्बत, चीन, मंगोलिया और बृहत्तर भारत के कई देशों में फैला है। ऐसे महायोगी गोरखनाथ जी जब यहां आये तो उनकी साधना स्थली की महिमा अपने आप बढ़ गयी। महायोगी की चमत्कारी सिद्धियों और उनकी कृपालुता से प्रभावित लोगों ने जब यहां आना प्रारम्भ किया तो धीरे- धीरे कालान्तर में इस स्थान को केन्द्र बना कर बस्तियों का निर्माण प्रारम्भ हुआ जो बढ़ते-बढ़ते वर्तमान में गोरखपुर नगर और जनपद के रूप में विद्यमान है|
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