उमड़ा आस्था का सैलाब

कडाके की ठंड के बावजूद मकर संक्रान्ति के पर्व पर गोरखनाथ मंदिर में विचड़ी को लेकर श्रद्धालुओं में जबरदस्त उत्साह दिरवा। मकर संक्रांति के अवसर पर शिवावतार महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के दरबार में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा पड़ा।गोरखनाथ मंदिर में आधी रात से विचड़ी चढ़ने के इंतजार में खड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ उनके आस्था की गवाही दे रहेथे। जैसे ही गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को ब्रह्ममुहूर्त में रिवचड़ी चढ़ाई। पल भर बाद ही श्रद्धालुओं ने । कतारबद्ध होकर आस्था की विचड़ी चढ़ाईआम हो या रवास सभी कतार में अपनी बारी का इंतजार करते हुए दिख रहे थे।



गोरखपुर। मकर संक्रांति के अवसर पर शिवावतार महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के दरबार में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा पड़ा। बुधवार को सूर्यदेव बादलों के पीछे ही रहे। कोहरे और गिरते पारे के बीच लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं दिखी। इसके बावजूद महायोगी के दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब। भारी सरक्षा के बीच लाखों श्रद्धालुओं ने किया गुरु गोरक्षनाथ का दर्शन-पूजन कर चढ़ाई खिचड़ी। नेपाल से लेकर गोरखपुर के आसपास के जिलों से उमड़े लाखों श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा है। भक्तिभाव में डूबे श्रद्धालु रह रहकर बाबा गोरखनाथ के जयकारे लगा रहे थे। श्रद्धालुओं ने खिचड़ी चढ़ाने के साथ ही अखण्ड धूना की भस्म को प्रसाद भी ग्रहण की। खुद मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर सुरक्षा व्यवस्था से लेकर अन्य व्यवस्था पर नजर रखे हुए थे। मकर संक्रांति एवं गोरक्षनगरी में विशेष संबंध है। कहा जता है कि बाबा गोरखनाथ ज्वाला देवी के स्थान से खिचड़ी मांगते हुए यहां आए थे और अपना खप्पर यहीं पर रख कर साधना में लीन हो गए। उस खप्पर में तमाम श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाने लगे लेकिन बाबा का खप्पर कभी भरा नहीं यह देख श्रद्धालु हैरान थे उसी समय से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है।



आस्था एवं मान्यता का संगम


मान्यता है कि इस दिन भगवान भूवन भास्कर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वंय उसके घर जाते है। चूकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी है, अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। और मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पिछे-पिछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थी। दान का पर्व है मकर संक्रान्ति इस दिन गंगा, जमुना व सरस्वती के संगम तट प्रयागराज पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है। शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरूआत होती है माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के अन्तिम स्नान चलता है।


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