असंभव को भी संभव बनाता है महाशिवरात्रि व्रत

वाराणसी। ज्योतिष की दृष्टि से महाशिवरात्रि की या रात्रि का बड़ा महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित भरत मिश्र के अनुसार भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है। चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में चन्द्रमा की शक्ति लगभग पूरी तरह क्षीण हो जाती है। जिससे तामसिक शक्तियां व्यक्ति के मन पर अधिकार करने लगती हैं जिससे पाप का प्रभाव बढ़ जाता है।



आचार्य मिश्र ने बताया कि भगवान शंकर की पूजा से मानसिक बल प्राप्त होता है, जिससे आसुरी और तामसिक शक्तियों के प्रभाव से बचाव होता है। रात्रि से शंकर जी का विशेष स्नेह होने का एक कारण यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर संहारकर्ता होने के कारण तमोगुण के अधिष्ठिता यानी स्वामी हैं। उन्होंने बताया कि रात्रि जीवों की चेतना को भी छीन लेती है और जीव निद्रा देवी की गोद में सोने चला जाता है। इसलिए रात को तमोगुणमयी कहा गया है। यही कारण है कि तमोगुण के स्वामी देवता भगवान शंकर की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा प्रदान होती है जिससे कोई भी असम्भव कार्य सम्भव में बदल जाते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागृत रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। अविवाहित महिलाएं इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएं अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाएं रखने के लिए इस व्रत को करती है।


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