जच्चा-बच्चा के लिये जीवनदान बनी 102 नंबर एंबुलेंस सेवा
जनपद में 7.71 लाख गर्भवती, बच्चों और नसबंदी लाभार्थियों ने किया है सेवा का सदुपयोग
एंबुलेंस में आपद परिस्थिति में डिलेवरी का पूरा किट मौजूद रहता है
सामान्यतया फोन करने पर 12 मिनट के भीतर करते हैं रिस्पांड
गोरखपुर। जिले में 102 नंबर एंबुलेंस सेवा जच्चा-बच्चा के लिए वरदान साबित हो रही है। सेवा के नोडल अधिकारी एसीएमओ आरसीएच डॉ. नंद कुमार ने सोमवार को बताया कि 17 जनवरी 2014 से जनवरी 31 जनवरी 2020 तक 7.71 लाख गर्भवती, बच्चों और नसबंदी के लाभार्थियों ने इस सेवा का सदुपयोग किया है। एंबुलेंस में आपद परिस्थिति में डिलेवरी कराने का पूरा किट भी मौजूद रहता है और कई दर्जन सुरक्षित प्रसव एंबुलेंस के भीतर ही प्रशिक्षित ईएमटी ने करवाया भी है। जरूरतमंद के फोन करने के 12 मिनट के भीतर एंबुलेंस को सामान्यता मौके पर पहुंचना होता है।
एसीएमओ ने बताया कि 102 नंबर सेवा की कुल 50 एंबुलेंस जिले में मौजूद हैं जो सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात रहती हैं। ये एंबुलेंस खासतौर से गर्भवती की सुविधा के लिए होती हैं और 24 घंटे में कभी भी फोन करके इन एंबुलेंस की सेवा ली जा सकती है। सबसे अच्छी बात यह है कि जिले में इस सेवा के कहीं से भी और कभी भी किसी लाभार्थी द्वारा दुरुपयोग की कोई शिकायत नहीं आई है।
आसनी को एंबुलेंस ने ही दिया जीवन
20 जनवरी को सुबह 4.16 पर खोराबार पीएचसी पर तैनात एंबुलेंस में ड्यूटी कर रहे ईएमटी यार मोहम्मद को निर्देश मिला कि वह ग्राम जवनीया के कॉलर कैलाश को अटेंड करें। यार मोहम्मद पायलट समेत सुबह 4.30 तक गांव में पहुंच गए। कैलाश की पत्नी सुधा (35) को लेबर पेन हो रहा था। पायलट ने गाड़ी की कमान संभाली और ईएमटी, गर्भवती व उसके पति के साथ गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी रुस्तमपुर पहुंची ही थी कि पेन काफी बढ़ गया। ईएमटी ने गाड़ी किनारे लगवाया और पायलट व गर्भवती के पति के सहयोग से सुबह करीब 4.45 तक सुधा का सुरक्षित प्रसव करा दिया। सुधा ने बताया कि उनकी बेटी आसनी अब स्वस्थ है। एंबुलेंस की सुविधा ने उनकी बेटी को नया जीवन दिया है।
45 दिन का मिला है प्रशिक्षण
सुधा का प्रसव कराने वाले ईएमटी यार मोहम्मद ने बताया कि वर्ष 2016 में जीवीके फाउंडेशन ने उन्हें प्रसव कराने और क्रिटिकल केस मैनेजमेंट का 45 दिन का प्रशिक्षण दिया था। इस प्रशिक्षण का काफी लाभ मिला। वह पहले भी एंबुलेंस में ही प्रसव करा चुके हैं। प्रसव के बाद वह लोग जच्चा-बच्चा को फौरन उच्च चिकित्सा केंद्र ले जाते हैं और चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही आगे की कार्यवाही की जाती है। एंबुलेंस के पायलट को भी सात दिन का प्रशिक्षण दिया जा चुका है ताकि वह आपातकाल में एक अच्छे सहयोगी की भूमिका निभा सके।
इनके लिए है सुविधा
- • गर्भवती के लिए
• नसबंदी के बाद लाभार्थी को घर छोड़ने के लिए
• जच्चा-बच्चा को घर छोड़ने के लिए
• इंसेफेलाइटिस मरीजों को स्वास्थ्य केंद्र से मेडिकल कालेज ले जाने के लिए
लोग करें सहयोग
102 नंबर एंबुलेंस सेवा का सदुपयोग सभी लाभार्थियों के लिए निःशुल्क है। लोगों से सिर्फ यही अपील है कि अगर कहीं भी कोई एंबुलेंस दिखे तो उसे रास्ता दें। अगर किसी को कोई दिक्कत है तो वह शिकायत कर सकता है।
डॉ. श्रीकांत तिवारी, सीएमओ
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