गोरखपुर। वर्ष कृत्य और पद्मपुराण एवं स्कन्द पुराण में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को तीर्थ स्थलों में स्नान-दानादि के लिए परम फलदायिनी बताया गया है। आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र के अनुसार प्रयाग में माघ पूर्णिमा को स्नान, दान एवं यज्ञ का विशेष महत्व है।
इस पुण्य तिथि को कल्पवासी तथा सामान्यजन प्रातः काल गंगा स्नान कर गंगा की आरती और पूजा की जाती हैं। इसके बाद अपने कुटिया में जाकर हवन आहुति देने का प्रावधान है। इसके बाद साधु-सन्यासी तथा ब्राह्मणों एवं निर्धनों को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।कल्पवास के लिए रखी वस्तुएं (भोजन- अन्नादि) दान किया जाता है। इसके बाद गंगा की रेणुका (बालू), रक्षासूत्र और पंचांग लेकर जल के साथ ही श्रृद्धालु अपने नगर को लौटते है। पुनः गंगा माता के दरबार में उपस्थित होने की प्रार्थना करतें है।
पूजा विधि
माघी पूर्णिमा को कुछ धार्मिक कृत्य की विधि शास्त्रों में दी गयी है। प्रातः काल नित्यकर्म एवं स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का विधि पूर्वक पूजन करें। फिर पितरों का श्राद्ध करें। असमर्थों को भोजन, वस्त्र तथा आश्रय दें। तिल, कम्बल, कपास, गुड़, घी, मोदक, जुते, फल, अन्न और यथा शक्ति सुवर्ण आदि का दान करें तथा पूरे दिन व्रत रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सत्संग तथा कथा-कीर्तन में दिन-रात बिताकर दूसरे दिन पारण करें।
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