मुक्ति स्थल पर स्थापित शिवालय की महिमा अपार

मुक्तीश्वर नाथ महादेव किसी समय में राप्ती एवं रोहिन नदी के तट पर हुआ करता था। चूंकि यह मंदिर श्मशान के किनारे था और श्मशान को मुक्ति स्थल कहा जाता है इसलिए इस मंदिर का नाम मुक्तीश्वर नाथ पड़ा।



गोरखपुर। मुक्तेश्वर नाथ महादेव शहर के प्राचीन शिव मंदिरों में से एक है। शिवरात्रि के अलावा भी अन्य दिनों यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजन-अर्चन के लिए पहुंचते हैं। कहा जाता है कि जहां मुक्तीश्वर नाथ मंदिर स्थित है उसके बगल से ही राप्ती एवं रोहिन नदियां गुजरती थी। उस समय यह मंदिर श्मशान के किनारे था इसलिए लोग इस मंदिर को मुक्तेश्वर नाथ कहने लगे। मंदिर के मुख्य पुजारी झिनकू उपाध्याय बताते है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। जब यह क्षेत्र पूरी तरह से वीरान था तब यहां बाबा काशीनाथ नाम के एक तपस्वी आए और उन्होंने यहां ध्यान लगाना शुरू किया। कहा जाता है कि बाबा काशीनाथ ही कावेरी नदी से शिवलिंग लेकर आए थे और उस शिवलिंग को यहां स्थापित किया। जंगल वीरान होने के कारण उस समय यहां कम ही लोग आते थे लेकिन मंदिर की ख्याति जब धीरे-धीरे फैलने लगी तो यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई।



पंडित झिनक उपाध्याय के मुताबित उनकी कई पीढ़ियां मंदिर की देखरेख करती आ रही हैं। उनके बाबा यदुनाथ उपाध्याय ने मंदिर को एक स्वरूप देना शुरू किया और धीरे-धीरे लोगों की सहायता से मंदिर का निर्माण कराया गया। वे कहते हैं जिस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है वह काफी प्राचीन है। इसके वास्तु को देखकर इसकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है।


परी होती है मनोकामना



मुक्तेश्वरनाथ महादेव के मुख्य पुजारी झिनकू उपाध्याय कहते हैं यह एक सिद्धपीठ है यहां बाबा के दरबार में जो सच्ची आस्था के साथ आता है मुक्तेश्वरनाथ सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।


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