-चिकित्सक और साथी मरीजों ने दिया संबल, कोरोना से लड़ यह परिवार बना चैंपियन
-सहजनवां के नेवासे गांव की दम्पत्ति और उनकी पांच साल की बेटी तारा की कहानी
-रेलवे अस्पताल के इंतजामात से खुश है परिवार, कोरोना मुक्त जिंदगी की मिली सौगात
गोरखपुर। अब गांव के लोग कोरोना से डरते नहीं हैं, बल्कि एहतियात बरतते हैं। खुद रामजनम घर के बाहर कम से कम निकलते हैं। पूरा परिवार संक्रमण से बचाव के सभी आवश्यक सुरक्षात्मक उपाय अपनाता है। यह कहानी सहजनवां क्षेत्र के उस नेवासे गांव से जुड़ी है जिसमें एक ही परिवार के दम्पत्ति और उनकी पांच साल की बेटी कोरोना की चपेट में आ गये थे। चिकित्सक और साथी मरीज संबल न देते तो रामजनम और अंजू तो अपनी बिटिया तारा को कोरोना वार्ड में देख टूट ही जाते। सभी ने मिल कर हौसला बढ़ाया और पूरे परिवार को रेलवे अस्पताल से कोरोना मुक्त जिंदगी की सौगात मिल गयी। यह परिवार अस्पताल की व्यवस्था से काफी खुश है और गांव में सामान्य जीवनयापन कर रहा है।
रामजनम का कहना है कि कोरोना से ज्यादा दर्दनाक अचानक आपके आसपास के लोगों के व्यवहार में आया बदलाव होता है। वह मुंबई में पेंटर हैं। लॉकडाउन के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेन से पत्नी और दो बच्चियों के साथ गोरखपुर लौटे थे। गांव में ही उनके पूरे परिवार के सैंपल लिये गये। 03 जून का पता चला की वह और पत्नी अंजू कोरोना पॉजीटिव हैं। रामजनम के शब्दों में, ‘‘जब यह बात गांव वालों को पता चली तो लगा कि गांव के लोगों पर पहाड़ गिर गया हो। एक तनावपूर्ण माहौल बन गया, जो कोरोना के भय के कारण था। माता, पिता, दोनों बच्चियों और भाई को गोरखपुर औद्योगित विकास प्राधिकरण (गीडा) स्थित क्वारंटीन सेंटर में क्वारंटीन कर उनके भी सैंपल जांच के लिए भेजे गये। परिवार के बाकी लोगों के सैंपल तो निगेटिव थे लेकिन छोटी बिटिया तारा की रिपोर्ट पॉजीटिव थी। आधी रात में स्वास्थ्य विभाग ने एंबुलेंस का इंतजाम करवा कर छोटे भाई को पीपीई किट पहना उनके साथ ही बिटिया को अस्पताल भिजवाया।’’
रेलवे अस्पताल के प्रभारी एसीएमओ आरसीएच डॉ. नंद कुमार उस रात की कहानी कुछ यूं बयां करते हैं, ‘‘सबसे बड़ी चुनौती थी कि बिटिया को किसके साथ रेलवे अस्पताल भेजा जाए। एंबुंलेंस से आधी रात को जब बच्ची के चाचा अस्पताल पहुंचे तो बेहद भावुक क्षणों का सामना करना पड़ा। बिटिया मां की गोद में गई और यह परिवार एक दूसरे से लिपट कर काफी भावुक हो गया।’’
रामजनम का कहना है कि उन्हें खुद से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि बेटी कोरोना संक्रमित थी। लेकिन उनकी चिंता थोड़ी देर में ही दूर हो गयी। रात में ही वार्ड के साथी कोविड पॉजीटिव मरीजों ने उन्हें समझाया कि बच्चे भी स्वस्थ होकर लौट रहे हैं। इसके बाद चिकित्सकों ने भी अगली सुबह उनकी काउंसिलिंग की। मनोबल बढ़ाया गया। पोषणयुक्त खानपान मिला। 11 जून की रिपोर्ट में दम्पत्ति कोरोना निगेटिव हो गये लेकिन बच्ची तारा का इलाज जारी था।
किये गये विशेष इंतजामात
दम्पत्ति के कोरोना निगेटिव आने और बिटिया तारा के पॉजीटिव रहने के कारण सबसे बड़ी चुनौती थी कि तारा को अकेले अस्पताल में कैसे रखा जाए। माता-पिता बच्ची को छोड़ कर कैसे जाते। एसीएमओ आरसीएच तक बात पहुंची। उन्होंने माता-पिता के रहने और बच्ची के साथ एहतियाहत बरतने के संबंध में आवश्यक मार्गदर्शन किया और दम्पत्ति की हर तरह से मदद की। 18 जून को तारा की रिपोर्ट भी कोरोना निगेटिव आयी। एंबुलेंस बुला कर एक साथ पूरा परिवार गांव भेज दिया गया। जाते समय परिवार ने पूरे स्वास्थ्य महकमे को धन्यवाद ज्ञापित किया।
मरीज को दें साहस
रामजनम का कहना है कि आसपास कोरोना मरीज निकलने पर किसी को अनावश्यक चिंता नहीं करनी चाहिए और न ही ऐसे लोगों के परिवार के साथ भेदभाव करना चाहिए। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। गांव के लोग पहले तो थोड़ा डरे थे लेकिन बाद में उन्हीं लोगों में से कुछ ने उनके परिवार की मदद भी की। सभी लोगों को कोरोना मरीज के साथ बेहतर बर्ताव करना चाहिए। वह उन सभी लोगों के प्रति बेहद शुक्रगुजार हैं जो मुश्किल हालात में उन्हें लगातार आश्वस्त करते थे कि उनका परिवार स्वस्थ होकर लौटेगा।
गैप्स पर रहती है निगाह
रेलवे अस्पताल में एसीएमओ आरसीएच डा. नंद कुमार, चिकित्सा टीम, जिला क्वालिटी कंसल्टेंट डा.मुस्तफा खान और वहां की हेल्प डेस्क टीम कोरोनो मरीजों के इलाज के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रही है। जहां कहीं भी गैप्स नजर आते हैं उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाता है। अगर कहीं से कोई शिकायत आती जाती है तो उसका निराकरण भी किया जाता है।
डॉ. श्रीकांत तिवारी, मुख्य चिकित्साधिकारी
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