नाग पूजा से भगवान शिव होते हैं प्रसन्न

नाग देवता की उपासना का पर्व नाग पंचमी 25 जुलाई शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र होने से चंद्रमा की स्थिति कन्या राशिगत है। परिगणित और शिव नामक योग होने से नाग पूजन के लिए यह प्रशस्त दिवस है। ये योग श्रद्धालुओं के लिए विशेष फलदायी होंगे।




हिंदू धर्म में नाग को भगवान शिव के गले का हार और भगवान विष्णु की शैय्या कहा गया है। ऐसे में माना जाता है कि नाग की पूजा करने से भगवान शिव और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।


ज्योतिष में नाग पंचमी का महत्व
अचार्य पंडित शरदचंद्र मिश्र के अनुसार, दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। इसके साथ ही भगवान शिव के मस्तक पर भी चंद्रमा विराजमान हैं। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह बताया गया है। मन को शिव के प्रति समर्पण के उद्देश्य से भी नागपंचमी पर नाग को दूध पिलाया जाता है। नाग को शिव का सेवक भी कहा जाता है। नाग भगवान शिव के गले में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि नाग पृथ्वी को संतुलित करते हैं। ऐसे में उनकी उपासना का महत्व और भी बढ़ जाता है।


नाग पंचमी से जुड़ी पौराणिक कथा
पंडित मिश्र ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से चौदह रत्नों में उच्चैरूश्रवा नामक श्वेत अश्व रत्न प्राप्त किया गया था। उसे देखकर कश्यप मुनि की पत्नी कद्रू और विनता दोनों में अश्व के रत्न के संबंध में वाद विवाद हुआ। कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्याम वर्ण के हैं। यदि वह अपने कथन में असत्य सिद्ध हुईं तो वह विनता की दासी बन जाएंगी। कथन सत्य हुआ तो विनता उनकी दासी बनेंगी। कद्रू ने नागों को बाल के समान सूक्ष्म बनकर अश्व के शरीर में आवेष्ठित होने का आदेश दियाए लेकिन नागों ने असमर्थता प्रकट की। इस पर कद्रू ने क्रुद्ध होकर नागों को श्राप दिया कि पांडव वंश के राजा जनमेजय नाग यज्ञ करेंगेए उस यज्ञ में तुम सब जलकर भष्म हो जाओगे। श्राप से भयभीत नागों ने वासुकी के नेतृत्व में ब्रह्माजी से उपाय पूछा। भगवान ब्रह्मा ने कहा कि यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारू तुम्हारे बहनोई होंगे। उनका पुत्र आस्तीक तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया तथा इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का परीरक्षण किया था। इसी दिन नाग पंचमी मनाई जाती है।


नाग पंचमी की पूजन-विधि
पंडित मिश्र ने बताया कि इस व्रत के एक दिन पूर्व यानि चतुर्थी को एक समय भोजन कर पंचमी तिथि को उपवास या फलाहार का नियम है। गरुड़ पुराण के अनुसारए व्रती अपने घर के दोनों ओर नागों को चित्रित करके उनकी विधि पूर्वक पूजा करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसारए पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैंए इसलिए भक्तिभाव के साथ गंधए पुष्पए धूपए कच्चा दूधए खीरए भीगा हुआ बाजरा और घी से पूजन करें। सुगंधित पुष्प और दूध सर्पों को अति प्रिय होने से इस दिन लावा और दूध अर्पण किया जाता है। इस दिन सपेरों और ब्राह्मणों को भी लड्डू और दक्षिणा दान करें। अन्नए वस्त्र और फल भी निर्धनों को दें। ब्राह्मणों को खीर और मिष्ठान खिलाएं।


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