रोजना योग करने से बढ़ती है दूरदर्शिता

भयभीत लोग ज्यादा दावे करते हैं, क्योंकि उनके भीतर कहीं भय छिपा रहता है। भीतर की कमजोरी छिपाने के लिए हिम्मत की बातें करने हैं। किष्किंधा कांड में जब सारे वानर सीताजी की खोज के लिए निकले तो खूब उत्साह में थे। सात्विक अहंकार था कि हम इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए चुने गए हैं। हमारे साथ भी ऐसा ही होता है जब हमें किसी बड़े काम या लोकप्रिय घटना से जुड़ने का अवसर मिलता है, तो प्रयास की गंभीरता से अधिक अहंकार का स्पर्श काम करता है। सीताजी की खोज शक्ति-भक्ति और शांति की खोज का रूपक है। यह बताता है कि सद्कार्य की नीयत के बाद भी बाधाएं भी आती हैं।



तुलसीदास जी ने इस दृश्य पर लिखा 'लागि तृषा अतिसय अकुलाने। मिलइन जल घन गहन भुलाने।। मन हनुमान कीन्ह अनुमाना। मरन चहत सब बिन जल पाना।।' वानरों को प्यास लगी और पीने के लिए जल नहीं मिल रहा। हनुमानजी ने मन ही मन विचार किया कि ये सब मरना चाहते हैं। भूख और प्यास भक्ति, शक्ति और शांति के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। इन्हें कब लगना चाहिए और कब इनकी पूर्ति होनी चाहिए यदि इसमें सावधानी नहीं है तो हम इन तीनों मामलों में चूक जाएंगे। हनुमानजी ने मन ही मन विचार किया। हनुमानजी का मन में विचार करने का अर्थ मन को निर्विचार करना भी है। हनुमानजी 'योगी' थे और योगी जब भी सोचता है, दूरदर्शिता के साथ सोचता है। वे समझ गए इन्हें ऐसी प्यास लगी है कि यदि पूर्ति नहीं हुई तो सब मर जाएंगे। कुछ करना पड़ेगा। यह समझ योग का ही परिणाम थी। बड़े काम करना हो तो योग से जुड़ना चाहिए। यदि हम हनुमान भक्त हैं तो हमारा संबंध किसी धर्म से विशेष से नहीं, सिर्फ सफलता पाने से है।


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