अमृत "नामक औदायिक योग में अक्षय नवमी व्रतार्चन 23 को

अक्षय नवमी 23नवम्बर दिन सोमवार को

 "अमृत "नामक औदायिक योग में अक्षय नवमी व्रतार्चन सम्पन्न होगा।



गोरखपुर। वाराणसी प्रकाशित हृषिकेश पंचांग के अनुसार 23 नवम्बर दिन सोमवार को सूर्योदय 6बजकर 40 मिनट पर और नवमी तिथि सम्पूर्ण दिन और रात्रि शेष 3बजकर 8 मिनट तक (24 नवम्बर को 3-8 a-m) है। इस दिन सायंकाल शतभिषा नक्षत सायंकाल 4बजकर 34 मिनट तक है।सोमवार को शतभिषा नक्षत्र होने से "अमृत "नामक औदायिक योग का निर्माण हो ही जाता है ।यद्यपि सम्पूर्ण कार्तिक मास का माहात्म्य है परन्तु इस दिन स्नान ,दान ,पूजन, तर्पण तथा व्रत का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है ।धर्म शास्त्र के अनुसार इस दिन पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि ली जाती है ।अष्टमी से युक्त नवमी ग्राह्य है परन्तु दशमी विद्धा, नवमी अग्राह्य है ।ब्रह्मवैवर्त पुराण का वाक्य है--"अष्टम्या नवमी विद्धा कर्तव्या फलकाङ्क्षिणा।न कुर्यान्नवमीं दशम्यां तु कदाचन ।।"-सतयुग का आरम्भ इसी दिन हुआ था(कल्पभेद से द्वापर युग का भी )।इस दिन आॅवला के वृक्ष का पूजन भक्तिभाव से करनी चाहिए।पुराणों मे कहा गया है कि इस दिन आॅवले के वृक्ष का जिस मनोकामना से पूजन किया जाता है,वह मनोकामना पूर्ण होती है इस दिन आॅवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर भोजन दान और भोजन ग्रहण करने का महत्व है ।यदि भोजन बनाने मे असुविधा हो तो भी घर से भोजन बनाकर --प्रथम आॅवले के वृक्ष के पूजन के बाद,वहाँ भोजन करना चाहिए ।भोजन मे खीर ,पूड़ी और मिष्ठान्नो का सर्वाधिक स्थान है ।ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने इस दिन कूष्माण्ड नामक दैत्य को मारकर धर्म की रक्षा किये थे ।एक अन्य संहिता के अनुसार श्रीकृष्ण ने कंस वध से पूर्व तीन वनों की परिक्रमा (वृन्दावन,मधुवन और अम्बिकावन) की थी ।इस कारण इस दिन श्रद्धालु वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं।

व्रत विधि

इस दिन प्रातःकाल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में अक्षत,पुष्प और जल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प लें--"ममाखिल पाप क्षय पूर्वक धर्मार्थ काम मोक्ष सिद्धि द्वारा श्रीविष्णु प्रीत्यर्थं धात्री मूले धात्री पूजनं करिष्ये ।"-ऐसा संकल्प कर धात्रीवृक्ष(आॅवले के वृक्ष)के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर-"ऊॅ धात्रै नमः "-मन्त्र से षोडशोपचार विधि से पूजन करें और आॅवले के वृक्ष मे दूध की धारा गिराये हुए पितरों का तर्पण करें--"पिता पितामहाश्चैव अपुत्रा ये च गोत्रिणः।ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तं देवर्षि पितृमानवाः ।ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽयं पयः ।।"--इसके बाद आॅवले के तने में सूत्रावेष्टन करें। सूत्रावेष्टन निम्न मन्त्र से किया जाय

"दामोदर निवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः ।सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते ।।"

इसके बाद कर्पूर या घृत पूर्ण दीप से आॅवले के वृक्ष की आरती करें ।आरती के बाद प्रदक्षिणा भी की जाय। तदन्तर आॅवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी करायें और पूजन के बाद स्वयं आॅवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करें ।--इस दिन एक पका हुआ कुम्हड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अन्दर रत्न,सुवर्ण,रजत या सिक्का आदि रखकर-"ममाखिल पाप क्षय पूर्वक सुख -सौभाग्यादीनाम् उत्तरोत्तर अभिवृद्धयै कूष्माण्ड दानमहं करिष्ये-"कहकर विद्वान यथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक कर दक्षिणा सहित दे दें। पितरो के निमित्त शीतनिवारण के लिए तथाशक्ति कम्बल आदि ऊनी वस्त्र भी निर्धन और सत्पात्रों को प्रदान करे ।

इस दिन आॅवले का दान और आॅवले के वृक्ष का आरोपण परम पुनीत माना गया है ।पद्मपुराण के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आॅवले के वृक्ष मे भगवान विष्णु और शिव दोनो देवता का निवास होता है ।यह पवित्र फल श्रीविष्णु को प्रसन्न करने वाला व शुभ फलदायक है ।इस फल को ग्रहण करने वाला सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।आॅवले के रस पीने से धर्मसंचय होता है और सब प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होता है ।आॅवले के वृक्ष का दर्शन और जहाॅ आॅवला रहता है ,वहाँ श्रीविष्णु विराजमान रहते हैं और सुस्थिर लक्ष्मी का वास होता है ।शिव पुराण मे भगवान शिव ने कार्तिकेय जी कहा कि आॅवला वृक्ष साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप है ।इसके स्मरण मात्र से गोदान के तुल्य फल मिलता है।

अक्षय नवमी से सम्बद्ध एक कथा

किसी नगर में एक वैश्य दम्पति रहते थे ।उनके धन सम्पत्ति पर्याप्त था परन्तु सन्तान न होने से वे दुःखी थे ।एक दिन उसकी पड़ोसन ने उसे सलाह दी कि वह एक बच्चे को बलि दे तो उसे संतान प्राप्त होगा ।वैश्य की पत्नी ने एक बालिका की बलि दे दी ।इसी पाप से उसे कुष्ठ रोग हो गया।वैश्य को जब उसके पाप का पता चला तो वह प्रसन्न हुआ और कहा कि तुमने पाप किया है,इसलिए इस दुर्दशा को प्राप्त हुई हो ।उसने गंगा स्नान कर अक्षय नवमी को आॅवले कै पूजन और सेवन का विधान बताया ।वह अक्षय नवमी को आॅवले का पूजन की और आॅवले का सेवन प्रारम्भ कर दी,फलतः उसका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया और उसे संतान की प्राप्ति भी हुई।

आचार्य पं शरदचन्द मिश्र अध्यक्ष-रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी गोरखपुर ।

Comments