मोक्षदा एकादशी और गीता जयन्ती 25 दिसम्बर को



आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र,

गोरखपुर। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है। एकादशी तिथि सम्पूर्ण दिन और रात्रि एक बजकर 56 मिनट तक, मेष राशि पर चन्द्रमा की स्थिति और शिव नामक योग है। इसे मोक्षदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गीता जयन्ती भी मनाई जाती है। यह पर्व 25 दिसम्बर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। पुराणों के अनुसार इस दिन के पूजन और उपवास से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज से पाॅच हजार वर्ष पूर्व द्वापर युग मे कुरुक्षेत्र के मैदान मे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मोह का परित्याग कर समत्व भाव की प्राप्ति का प्रवचन दिया था। इसी दिन योगेश्वर कृष्ण ने अर्जुन के ज्ञान चक्षु को खोले थे। गीता मे 18अध्याय और 700 श्लोक हैं। इसमे 574 श्रीकृष्ण के द्वारा कहा गया है,84 श्लोक अर्जुन के,41श्लोक संजय के,और एक धृतराष्ट्र के द्वारा कहा गया है। गीता सनातन धर्म का एक प्रमुख ग्रन्थ है इसे महाभारत में अमृत रूप माना गया है ।योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते है कि इसका पाठ करने वाला भले ही मलीन हो,लेकिन यदि वह गीता का सेवन करता है तो ईश्वर की कृपा से मोक्ष प्राप्त करता है। अर्जुन को ज्ञान देने वाली गीता भले ही धार्मिक ग्रन्थ तो है ही,साथ ही यह दर्शन शास्त्र का उत्तम उदाहरण भी है। चाहें भावनात्मक समस्या हो या मानसिक परेशानी-सबका समाधान इस ग्रन्थ मे है। विद्वानों का कथन है कि गीता का पाठ जीवन के समस्त समस्याओं का समाधान कर देता है।गीता के प्रत्येक श्लोक मे जीवन जीने की कला का विशद विवेचना है। यही कारण है कि आज हजारों वर्ष व्यतीत होने के बाद भी यह प्रासंगिक है।इसमें अच्छे-बुरे कर्मो का फल समझाया गया है। जीवन के हर परिस्थितियों में पग-पग पर निर्देश देने वाली गीता की महत्ता सर्वदा बनी रहेगी ।इस दिन के एकादशी के बारे मे कहा गया है कि जिस प्रकार अर्जुन का मोह क्षय हुआ था ,उसी प्रकार गीता जयन्ती का आयोजन तथा इस दिन एकादशी व्रत सम्पन्न करने वाले श्रद्धालुओं का लोभ, मोह, मत्सर व समस्त पापों का क्षय हो जाता है।



पूजन विधि विधान : 

इस दिन तिथ्यादि कर्मो से निवृत होकर भगवान दामोदर का गन्ध,पुष्प,दीप आदि षोडशोपचार पूजन करें,तुलसी की मंजरियो से भगवान का स्वागत करें। मांगलिक गायन,वाद्यों से पूजन और आरती करें। व्रत के दिन फलाहार करें। यदि सम्भव हो तो गीता का पाठ भी करें। यदि न कर सके तो भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र ही सुने या पढ़ें। "ऊॅ नमो भगवते वासुदेवाय "-मन्त्र का यथा संख्या जप भी और श्रीकृष्ण का चिन्तन भी बहुत उत्तम माना गया है।मिथ्या भाषण,दुष्कर्मो का त्याग करें। सात्विक भाव से जीवन यापन का संकल्प लें ।

व्रत कथा :

प्राचीन काल मे चम्पक नामक नगर मे वैखानक नामक एक राजा राज्य करता था।वह अपने प्रजा का पालन अपने पुत्रों जैसा करता था।उसकी प्रजा भी उससे स्नेह करती थी। उसके राज्य मे वेद-वेदांगो के जानने वाले बहुतों से ब्राह्मण रहते थे। एक दिन राजा स्वप्न मे एक विचित्र दृश्य देखा। उसने देखा कि उसके पिता को नरक मे घोर यातनाएं दी जा रही है और वे बुरी दशा मे विलाप कर रहे हैं। पिता को अधोगति मे देखकर,उसने यह वृतान्त ब्राह्मणों को बताया और जानना चाहा कि-दान,जप या व्रत जिस किसी भी विधि से मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिले ,वह विधि बताएं। राजा के दुखित वृतान्त को सुनकर एक ब्राह्मण ने कहा--"राजन !अपने पिता की मुक्ति के लिए आप मुनि पर्वत जी के आश्रम मे चलें जाइये,जो यहाँ से थोड़ा दूर है। राजा ने मुनि शार्दुल के आश्रम में जाकर प्रणाम किये ।समस्त वार्ता को सुनकर मुनि ने बताया कि तुम्हारे पिता पूर्व जन्म मे दो विवाह किये थे और उसमे एक पत्नी के साथ उत्तम बर्ताव नही किये थे।उसी पाप से नरक भोग रहे हैं। और तुम पिता की मुक्ति के लिए मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रतार्चन करो तो तुम्हारे पिता का उद्धार हो जायेंगा। मुनि के निर्देशानुसार वह व्रत का आचरण कर व्रत के पुण्य को अपने पिता को अर्पित कर दिया। इसके प्रभाव से वैखानक के पिता नरक से मुक्त होकर स्वर्ग चले गये। तभी से यह मान्यता है कि जो कोई मोक्ष दा एकादशी का व्रत करेगा ,वह सांसारिक सुखों का उपभोग करता हूआ,अन्त मे मोक्ष को प्राप्त होगा।

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