ज्ञान को लेकर भारत के राष्ट्र जीवन में बड़ी गहन अभीप्सा रही है। वैदिक काल से ही भारत के जीवन में ज्ञान को लेकर प्यास देखी गयी है। यह ज्ञान साधारण नहीं है, न ही सूचनात्मक है। पूर्वजों ने भारतीय ज्ञान को तत्व ज्ञान कहा है। तत्वज्ञानी की अभिव्यक्ति गुरु गोरखनाथ जी के कथन में दिखायी पड़ती है। गोरखनाथ जी कहते हैं ष्ष्अलेख लेखंत, अदेख देखंतष्ष् अर्थात् जो दूसरे लोग देख नहीं पाते उसे ज्ञानी देख लेता है और जिसे दूसरे स्पर्श नहीं कर पाते उसे वह स्पर्श कर लेता है। यह ज्ञान परम्परा गुरु से प्राप्त है, जिस पर भारत को गर्व है। स्वतन्त्रता तक भारत के ज्ञान राष्ट्रीय भाव, संस्कृति, धर्म दर्शन को लेकर बड़ा आग्रह था। यह आग्रह स्वतन्त्रता के बाद घटता गया। भारतीय संस्कृति और दर्शन को हिकारत से लिखा गया। सारी दुनिया को छद्म गतिशील विद्धानों ने भारत में प्राप्त किये जाने वाले ज्ञान को थोथा बताया। उन लेखकों ने कहा कि यह भाववादी दर्शन है, गायॅ पूर्वजों द्वारा खायी जाती थीं। उन लेखकों ने पूरी संस्कृति को नष्ट करने वाली छवि को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। इसके समानान्तर भारतीय दर्शन, ज्ञान-विज्ञान को पोषित करने वाली धारा भी प्रवाहित हो रही थी। इसका प्रभाव भी परिलक्षित हुआ। श्री गोरक्षपीठ में बहुत पहले प्रभावित करने वाली प्रज्ञा, दर्शन, ज्ञान की धारा फुटती थी। गुरु गोरखनाथ जी की वाणी में संसार और ईश्वर दोनों की सिद्धि की बात है। इसमें बताया गया है कि योग, ध्यान, जप, मुक्ति, मोक्ष, कैवल्य प्राप्त करने का स्रोत संसार में है। सहस्रार, जो शिरके भीतर विस्तृत है यहीं अमृत का वास है, यहीं शिव का निवास है। गुरु गोरखनाथ जी ने इसी को आकाश में औॅधा कुवॉ कहा है, जिससे अमृत झरता है। इसी श्रीगोरक्षपीठ से दुनिया में यहॉ की आभाए यहॉ का ज्ञान-विज्ञान पहुॅचा और संसार को सुन्दर बनाया। शिक्षा की दृष्टि से राष्ट्र सम्पन्न हो इसी दृष्टि से सन् 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की स्थापना हुई। उद्देश्य स्पष्ट था. आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति। आध्यात्मिक उन्नति एवं भौतिक उन्नति दोनों एक साथ चलें तो धरती स्वर्ग हो जाये और अमरत्व भी प्राप्त हो। श्री गोरक्षपीठ संस्कृत और संस्कृति की उपासना की केन्द्र है। यहॉ अध्यात्म और संसार दोनों को एक साथ देखा जा सकता है। उपर्युक्त विचार महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के संस्थापक सप्ताह समारोह के मुख्य महोत्सव एवं पारितोषिक वितरण समारोह में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित जी ने व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि यजुर्वेद के अन्तिम अध्याय में ऋषि कहते हैं कि विद्वानों से सुना है कि जो लोग अविद्या की उपासना करते हैं वे अन्धतम लोको में जाते हैं और जो विद्या की उपासना करते है वह भी नरक में जाते हैं। साधक को चाहिए कि वह विद्या और अविद्या दोनों की उपासना करे। अविद्या से वह संसार पार करता है और विद्या से उसे मोक्ष मिलता है। इस दृष्टि से शिक्षा परिषद् सुयोग्य नारगरिक तैयार कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि मैक्समूलर ने भारत में सिविल सेवा में आने वाले लन्दन के छात्रों को 'व्हाट इण्डिया टीच अस' में भारत के दर्शन, उपनिषदोंए, ऋषियों-मुनियों के सन्दर्भ में बताया। उसने बताया कि भारत विचित्र देश है। वहॉ से हम अनेक बातें सीख सकते हैं। मैक्समूलर का भारतए विवेकानन्द का भारत यदि भारत में कहीं है तो वह श्री गोरक्षपीठ में है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा परिषद् का यह आयोजन अनूठा है। इसकी प्रेरण भारत की अन्य शिक्षण.संस्थाएँ ग्रहण कर आगे बढ़ सकती हैं और अविद्या एवं विद्या के तप से भारत को आगे ले जा सकती हैं।
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