अवध एवं मिथिला में बही पगे गीत की धार

सीता-राम विवाहोत्सव पर अयोध्यानगरी में रामकलेवा की तैयारियां दो सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है। विवाह पंचमी पर मंदिरों में रविवार को अवध एवं मिथिला की संस्कृति में पगे गीत गाई गईं, भगवान राम सहित चारों भाइयों के दूल्हा के रूप में नेग-न्योछावर की भी रस्म निभाई और आराध्य के विग्रहों के सम्मुख छप्पन भोग के साथ राम कलेवा की परंपरा का संपादन किया गया । रामभक्तों की प्रधान पीठ कनकभवन, मणिरामदास जी की छावनी, दशरथमहल बड़ास्थान, रामवल्लभाकुंज, लक्ष्मणकिला, रंगमहल, हनुमानबाग, जानकीमहल, विहुतिभवन, रामहर्षणकुंज, सियारामकिला, झुनकीघाट, रसमोदकुंज आदि मंदिरों में राम कलेवा के उत्सव में डूबा रहा। विवाह रस्म के मौके पर गीत-संगीत एवं भोज-भंडारे के साथ भगवान को पर गीत-संगीत एव भोज-भडार छप्पन व्यंजनों के भोग के बाद संतों-श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में व्यंजनों को वितरित किया गया।

 यहां हुआ था राम-जानकी विवाह 

विवाह पंचमी के दिन विधि-विधान के साथ जनकपुरी से 14 किलोमीटर दूर उत्तर धनुषा नाम स्थान है। जनकपुर वर्तमान में नेपाल में स्थित है। यहां कुछ दूर उत्तर धनुषा में बताया जाता है कि रामचंद्रजी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को इस प्रसंग का अवशेष बताया जाता है। पूरे वर्षभर और खासकर विवाह-पंचमी पर यहां दर्शनार्थियों की भीड़ रहती है।

धनुष नहीं अहंकार तोड़ा

विवाह ऐसा संस्कार है जिसे प्रभु श्रीराम और कृष्ण ने भी अपनाया। भगवान राम ने अहंकार के प्रतीक धनुष को तोड़ा। यह इस बात का प्रतीक है कि जब दो लोग एक बंधन में बंधते हैं तो सबसे पहले उन्हें अहंकार को तोड़ना चाहिए और फिर प्रेम रूपी बंधन में बंधना चाहिए। यह प्रसंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों परिवारों और पति-पत्नी के बीच कभी अहंकार नहीं टकराना चाहिए क्योंकि अहंकार ही आपसी मनमुटाव का कारण बनता है।

मिथिला में सजती है राम-सीता का स्वयंवर

विवाह पंचमी एक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है यह दिन बहुत खास है। इस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस उत्सव को सबसे अधिक नेपाल में मनाया जाता है। क्योंकि सीता मैया राजा जनक की पुत्री थी, जो मिथिला नरेश थे और मिथिला नेपाल का हिस्सा है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक पर रावण के अत्याचार को समाप्त करने के लिए राजा दशरथ के पुत्र राम और राजा जनक की पुत्री के रूप में वैदेही ने जन्म लिया था। वैसे पुराणों के अनुसार माता सीता का जन्म धरती से हुआ था जब राजा जनक हल जोत रहे थे तब उनको एक नन्हीं सी बच्ची मिली थी। जिन्हें उन्होंने सीता नाम दिया था। इसी प्रकार आज भी विवाह पंचमी को सीता-राम के विवाह के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम सीता की विवाह के उपलक्ष में सभी मंदिरों में उत्सव होते हैं।

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