सेठ जयदयाल गोयंका ने 1922 में कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी और इसी ट्रस्ट के अंतर्गत 1923 में उर्दू बाजार में उन्होंने 10 रुपये मासिक किराये पर कमरा लेकर मशीन लगाया और गीता की छपाई शुरू करवाई। यही प्रेस आगे चलकर गीता प्रेस का आधार बना। वैसे तो सेठ जयदयाल गोयंका गोरखपुर के रहने वाले नहीं थे लेकिन उन्होंने गोररखपुरवासियों को एक ऐसा तोहफा दिया जिसने गोरखपुर को विश्व फलक पर प्रसिद्धि दिलाई। ज्येष्ठ मास की कृष्ण षष्ठी तिथि को विक्रम संवत 1942 को सेठजी जयदयाल गोयदंका का जन्म राजस्थान के चुरू शहर में हुआ था, वह दिन सन् 1885 का 4 जून था। जयदयाल गोयदंका के पिता का नाम खूबचंद था। वह पहले आर्य समाजी थे। सेठजी ने वैशाख कृष्ण द्वितीया विक्रम संवत 2022 (17 अप्रैल 1965) को पवित्र गंगा तट पर गीता भवन (स्वर्गाश्रम ऋषिकेश) में भौतिक शरीर का त्याग किया था।
आज भी है रखी है पहली छपाई मशीन
गीता का प्रकाशन जिस मशीन से गोरखपुर में शुरू हुआ, वह मशीन आज भी लोगों के दर्शनार्थ लीला चित्र मंदिर में रखी हुई है। बाहर से आने वाले लोगों को जब यह पता चलता है कि इसी मशीन से गोरखपुर में पहली गीता प्रकाशित हुई थी तो लोग उस मशीन को प्रणाम करते हैं और उसके प्रति आदर भाव प्रकट करते हैं।
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