धूमधाम से मनाई गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती



गोरखपुर। पक्कीबाग स्तथित सरस्वती शिशु मंदिर में शनिवार को महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पावन जयंती धूमधाम से मनाई गई। उक्त अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री धीरेंद्र कुमार सिंह जी, वरिष्ठ आचार्या शिशु वाटिका प्रमुख श्रीमती मीरा श्रीवास्तव एवं विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य, छात्र संसद प्रमुख व मीडिया प्रभारी आचार्य श्री एस एन कुशवाहा जी के द्वारा नेताजी के चित्र पर पुष्पार्चन कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया।



विद्यालय की छात्र- छात्राओं को संबोधित करते हुए श्री एस एन कुशवाहा जी ने कहा कि देशभक्तों से ही देश का मान है देशभक्तों से ही देश की शान है हम उस देश के फूल हैं जिसका नाम हिंदुस्तान है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान की आजादी में लाखों लोगों का योगदान रहा है जिनमें से बहुतों का इतिहास हमें नहीं पता कुछ का इतिहास पन्नों में दर्ज है, तो कुछ का नाम हर पल हर जुबां पर रहता है उसी में से एक है नेताजी सुभाष चंद्र बोस। अपने देश की आन बान मान एवं शान महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परम देशभक्त युवा क्रांतिकारी ब्रिटिश सल्तनत की जड़ें हिला देने वाले हमारे नेता जी की हिंदुस्तान ही नहीं संपूर्ण विश्व में पूजा होती है उनके परिचय की कोई आवश्यकता नहीं है। समूची दुनिया उनका आदर व सम्मान करती है, उनके आदर्शों पर चलने का प्रयत्न करती है। मां भारती के सपूत सुभाष बाबू हर दिल पर राज करते हैं जिनका नाम सुनते ही मन जोश और जज्बा से भर जाता है और देश के लिए कुछ कर गुजरने का दिल करता है। नेताजी की दृष्टि दूरगामी थी, वतन के प्रति उनमें अटूट प्रेम था वे साधारण मनुष्य ही नहीं अपितु ईश्वरीय अवतार थे। उन्होंने आईसीएस की परीक्षा पास ही नहीं की बल्कि टॉप किया इसके बावजूद भी उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। दिल्ली चलो, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जय हिंद कुछ ऐसे नारे हैं जिसे नेताजी ने कहे थे जो आज भी हमारे जेहन में बार-बार आते हैं। नेताजी ने अपना तन मन धन सब भारत माता की आजादी के लिए निछावर कर दिया। आजादी की लड़ाई में नेताजी को 11 बार जेल जाना पड़ा अपने लिए नहीं इस मातृभूमि के लिए। उनका मानना था कि आजादी मांगने से नहीं छिनने से मिलेगी गांधीजी हाथ जोड़कर भारत की आजादी चाहते थे परंतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों का हाथ तोड़ कर आजादी चाहते थे। सन 1938 में नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष बने उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया और फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की। तदोपरांत अंग्रेजों द्वारा उनको उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया 26 जनवरी 1941 को नेताजी भेष बदलकर निकलने में कामयाब रहे जिसके पश्चात वे जर्मनी पहुंचे जहां पर उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन किया,जिसमें लगभग 40000 सैनिक थे। आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति होने की हैसियत से स्वतंत्र भारत की स्थाई सरकार बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड सहित 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी। इतना ही नहीं उन्होंने आजाद हिंद सरकार की अपनी मुद्रा भी चलाई। नेताजी की मृत्यु कब और कैसे हुई यह आज भी एक पहेली है।

अंत में श्री एस एन कुशवाहा जी ने भारत माता के महान सपूत को हृदय से नमन करते हुए अपनी वाणी को विराम दिया। 

उक्त अवसर पर विद्यालय के उप प्रधानाचार्य श्री संजय श्रीवास्तव सहित विद्यालय के समस्त आचार्य एवं आचार्या बहने तथा भैया बहन उपस्थित रहे।

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