समस्त पापों से मुक्ति दिलाती है षट्तिला एकादशी व्रत

षट्तिला एकादशी व्रत 7 को गृहस्थों और 8 फरवरी 2021 को वैष्णवों करेंगे 


 

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने बताया यह एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की को रखा जाता है। जो व्यक्ति इस व्रत का पूर्ण विधि से पालन करता है, उसे बुरे कर्म और पापों से मुक्ति मिलती है, तथा उसका जीवन सुख से परिपूर्ण होता है। इस व्रत के प्रभाव से धन, धान्य, वस्त्र  एवं स्वर्ण आदि का आगमन परिवार मे होता है। इस जन्म में आरोग्यता मिलता है। कभी धन का अभाव और दुःखों की पीड़ा नही होती है। व्रती को वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि षट्तिला के उपवास के तुल्य अन्य कोई व्रत नही है। चूँकि माघ मास में ठण्डी ॠतु में और स्निग्ध पदार्थ के सेवन के लिए उपयुक्त होती है। अतः जो व्यक्ति इस दिन तिल से बने विविध व्यंजनों का सेवन करता है, उसको स्वास्थ्य लाभ मिलता है। इस षट्तिला एकादशी के दिन काली गाय और तिलों के दान का विशेष महत्व है।

षट्तिला एकादशी व्रत  विधि

इस एकादशी के दिन छह प्रकार से तिलों का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण इसका नाम षट्तिला एकादशी पड़ गया-

"तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी। 

तिलभुक् तिलदाता च षट्तिला पापनाशिनी " 

तिल मिले जल से स्नान, तिल का ऊबटन, तिल का होम, तिल मिले जल का पान, तिल का भोजन और तिल का दिन-इस प्रकार तिल का छह प्रकार से प्रयोग इस एकादशी के दिन किया जाया है।


पूजन विधि-विधान

इस एकादशी के दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करना चाहिए, तिल से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए, तिल मिलाकर जल पीना और से निमित्त पक्वान्नो के सेवन का विधान है। सफेद तिल से बनी वस्तुओं के खाने को ज्यादा श्रेष्ठ कहा गया है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रती उनका पूजन तिलों से करे। तिल के लड्डुओं का भोग लगाए और तिल से निमित्त प्रसाद ही भक्तों मे वितरित करे। व्रती को मनोविकारों का परित्याग कर तिलपट्टी और फलाहार का सेवन करना चाहिए। सायंकाल तिलो से हवन कर रात्रि जागरण करें। ब्राह्मण को भरा हुआ घड़ा,छाता, उनी वस्त्र और तिलों से बने व्यजंन का दान भी करना चाहिए।
 

व्रत कथा

विष्णुधर्मोत्तर में कहा गया है कि प्राचीन समय में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी और पूजा-पाठ मे लगी  रहती थी। अधिक उपवासों के कारण उसका शरीर क्षीण हो गया था। उसने अन्नदान से न तो ब्राह्मणों को तो प्रसन्न रखा, न देवताओ को कुछ भी न दिया।एक दिन भगवान विष्णु कापालिक का स्वरूप धारण कर उस ब्राह्मणी के दरवाजे पर क्षिक्षा माॅगने पहुँचे। ब्राह्मणी ने आक्रोश मे आकर उनके भिक्षापात्र में एक मिट्टी का ढेला डाल दिया। -व़त के प्रभाव से वह ब्राह्मणी मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक पहुँची, तो उसे रहने के लिए सुन्दर मिट्टी से निमित्त घर मिला। परन्तु उसमे खाने-पीने की व्यवस्था न थी। इस कारण दुःखी होकर उसने भगवान से प्रार्थना की कि मैने जीवन भर व्रतादि कर्म किया, परन्तु यहाँ मेरे खाने-पीने की कोई व्यवस्था नही है। इस पर भगवान ने प्रकट होकर बोले कि इसका रहस्य तुम्हें देवांगनाएं बतायेंगी। उनसे जाकर पुछो। जब वह देवांगनाओ के पास जाकर प्रश्न की तो देवांगनाओ ने कहा कि तुमने षट्तिला का व्रत नही किया, इसी कारण यहाँ कुछ प्राप्त न कर रही हो। पश्चात उस ब्राह्मणी ने इस व्रत को सम्पन्न की और समस्त सुखों की प्राप्त को उपलब्ध हुई।

Comments