प्रेम के भाव में एक हो जाते हैं भक्त और भगवान : श्रीकांत शर्मा



गोरखपुर। प्रेम नगरी में एक और एक मिलकर भी एक ही होते हैं। प्रेम में भगवान (प्रेमास्पद) और भक्त (प्रेमी ) मिलकर एक हो जाते हैं। यही भागवत की पराकाष्ठा है। यह बातें श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के दौरान कथाव्यास श्रीकांत शर्मा ने कहा। 

उन्होंने गीता वाटिका के प्रांगण में आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के छठवें दिन रविवार को कोलकाता से पधारे कथाव्यास श्री श्रीकांत जी शर्मा 'बालव्यास' ने कहा कि हमें केवल ठाकुर की पूजा तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, ठाकुर से वार्तालाप भी करना चाहिए। गोपियाँ ठाकुर से वार्तालाप करती हैं। गोपियों का ठाकुर  से वार्तालाप ही वेणु गीत है।  श्री गिरिराज निष्ठा हैं । यमुना नदी भगवान की ओर चलने वाली वृत्ति है । जब वृत्ति निष्ठापूर्वक भगवान की ओर चलने लगती है तब वेणुगीत का प्रारंभ होता है। जीवन में पर्वत जैसी निष्ठा होनी चाहिए जो बाधाओं से डिगे नहीं।

एक बार स्वामी विवेकानंद  ने स्वामी रामतीर्थ से पूछा --- कितने बज रहे हैं ? स्वामी रामतीर्थ ने उत्तर दिया ---- एक बज रहे हैं । थोड़ी देर बाद फिर विवेकानंद ने पूछा कितने बज रहे हैं । तब भी रामतीर्थ ने उत्तर दिया -- एक  बज रहे हैं । थोड़ी-थोड़ी देर पर कई बार विवेकानंद ने पूछा --- कितने बज रहे हैं ?  हर बार रामतीर्थ का उत्तर यही रहता कि एक बज रहे हैं । विवेकानंद ने कहा --- आपकी घड़ी में इतनी  देर से केवल एक ही क्यों बज रहे हैं ? स्वामी रामतीर्थ ने उत्तर दिया --- अब उस *एक* परमात्मा के अलावा और कुछ दिखाई ही नहीं देता । 

आंखों का फल एक ही है .....श्यामसुंदर की झांकी का दर्शन करना ।

अँखियां हरि दरसन की प्यासी ।देखन चाहत कमलनयन को निसिदिन रहत उदासी .....

 आली री मेरे नैना बान पड़ी । चित्त चढ़ी मेरे माधुरि मूरति, उर बिच  आन पड़ी ...... 

कथा शुभारंभ के पूर्व प्रतिदिन की तरह मुरलीधरा मनमोहना हे नंदनंदना श्री राधे माधवा  का मधुर संकीर्तन किया।

इस दौरान मंचस्थ त्रिवेणी संगम श्री भाई जी, मां जी एवं श्री राधा बाबा के चित्रपट और कथाव्यास का पूजन- अर्चन- माल्यार्पण किया गया।

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