- हर माह की नौ तारीख को होती है उच्च स्वास्थ्य इकाइयों पर महिलाओं की जांच
- गर्भावस्था के दौरान एक बार जरुर महिला चिकित्सक से करा लें अपनी जांच
संतकबीरनगर , 9 मार्च 2012। बघौली ब्लाक क्षेत्र के भैंसमथान गांव के निवासी बालेन्दर की 22 वर्षीया पत्नी सुमन गर्भवती थी। उसने आठवें माह के दौरान किसी प्राइवेट डाक्टर को दिखाया। वहां पर चिकित्सक ने कहा कि बच्चा पेट में मर गया है। आपरेशन करना पड़ेगा। इसके बाद पूरा परिवार चिन्तित हो गया। इसी दौरान किसी व्यक्ति ने कहा कि बघौली प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर जाकर दिखा लो। इसके बाद वे वहां पर गए। वहां पर महिला चिकित्सक डॉ मनीषा शाही ने सुमन की स्थिति को देखा, उसका अल्ट्रासाउण्ड कराया तो पाया कि बच्चा जीवित है। उन्होने उसका आवश्यक इलाज किया और महिला की नार्मल डिलिवरी हो गई।
ऐसी एक नहीं कई कहानियां हैं, जिनमें विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच नहीं कराने पर बिना वजह आपरेशन की नौबत आती है। शरीर और पैसे दोनों की हानि होती है। कई बार जच्चा और बच्चा की मौत भी हो जाती है। गर्भावस्था के दौरान माताओं को सुरक्षित करने की दिशा में प्रधानमन्त्री सुरक्षित मातृत्व अभियान से जच्चा - बच्चा को बड़ी बीमारी के खतरे से बचाने तथा मातृ मृत्यु दर को रोकने में काफी मदद मिलती है। जिले के हर प्राथमिक, सामुदायिक और जिला अस्पताल में गर्भवती की हर महीने की नौ तारीख को सम्पूर्ण जांच की जाती है। इसलिए गर्भवती को इस दिवस पर उच्च स्वास्थ्य इकाइयों पर जाकर अवश्य जांच करानी चाहिए ।
एसीएमओ आरसीएच डॉ मोहन झा बताते हैं कि गर्भावस्था के समय कई बीमारियों की आशंका रहती है। इस योजना के जरिये गर्भवती के अंदर जागरूकता फैलाने का मकसद यह है कि वह गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें । जिले के हर मातृ शिशु कल्याण केन्द्रों पर आशा के जरिए एएनएम उन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाती हैं, लेकिन उनकी एक बार विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच अति आवश्यक है। इसीलिए एएनएम और आशा को हर माह की नौ तारीख को गर्भवती को उच्च स्वास्थ्य केन्द्रों पर विशेषज्ञों की निगरानी में पूरी जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं। इस दौरान डाइबिटीज, एनीमिया, सीवियर एनीमिया, हाई ब्लड प्रेशर की जांच के साथ ही हाई रिस्क प्रेग्नेन्सी (उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था) चिन्हित की जाती है। इसीलिए इसे एचआरपी डे के नाम से भी लोग जानते हैं | इसलिए आवश्यक है कि गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे त्रैमास ( 3 से 6 माह के भीतर ) गर्भवती महिलाओं की जांच एक बार अवश्य कर ली जाए।
विशेषज्ञ से जांच जरूरी
डॉ मनीषा शाही बताती हैं कि गर्भवती की जांच आशा और एएनएम स्तर पर उपकेन्द्रों पर नियमित होती रहती है। लेकिन सरकार की मंशा यह है कि गर्भावस्था में कम से कम एक बार विशेषज्ञ के जरिए उनकी जांच कर ली जाए। इससे गर्भावस्था में चल रही महिला की हाईरिस्क प्रेगनेन्सी आदि का पता चल जाता है। उसी हिसाब से उसका उपचार होता है।
77 % का एमसीपी कार्ड
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे 4 के आंकड़े बताते हैं कि 45.7 प्रतिशत गर्भवती की एक बार जांच होती है, जबकि 32.2 प्रतिशत महिलाओं की चार बार से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सकों से जांच होती है। 77.1 प्रतिशत महिलाओं का एमसीपी ( मदर एण्ड चाइल्ड प्रोटेक्शन कार्ड ) बनता है, जबकि 66.4 प्रतिशत महिलाएं जननी सुरक्षा योजना से आच्छादित होती हैं।
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