सत्संग से परमात्मा का बोध : श्रीकांत जी शर्मा

 


गोरखपुर। गीता वाटिका के प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के तृतीय दिवस 18 मार्च को कथा प्रारंभ होने से पूर्व मंचस्थ त्रिवेणी संगम श्रीभाईजी, मां जी एवं श्री राधा बाबा तथा कथाव्यास का पूजन- अर्चन - माल्यार्पण किया गया ।
व्यासपीठ से कथाप्रसंग का विस्तार करते हुए कोलकाता से पधारे पूज्य श्री श्रीकांत जी शर्मा 'बालव्यास ' ने आदि शंकराचार्य जी के कथन की चर्चा करते हुए कहा कि मनुष्य वही है जो गोविंद के लिए जीता है । साधु - संगति से ही मनुष्यत्व की प्राप्ति होती है । परमात्मा के स्मरण में ही सुख है और जगत् के विस्मरण में ही सुख है।

परमात्मा का बोध सत्संग से होता है। बिना सत्संग के ज्ञान टिकता नहीं। इसलिए हमेशा सत्संग करते रहना चाहिए। गोविंद से मिलने की इच्छा लाखों जन्मों के पुण्य उदय होने पर होती है। जीव तीन प्रकार के होते हैं ---- बद्ध, मुमुक्षु और मुक्त ,। बद्ध वह  है जो गोविंद से मिलने की कोशिश नहीं करता। मुमुक्षु वह है जिसके अंदर गोविंद से मिलने की इच्छा है और मुक्त वह है जो गोविंद को प्राप्त कर चुका है।

 यदि सोने से पहले  हरिनाम का जप किया जाए और प्रातः काल उठते ही हरि नाम का स्मरण किया जाए तो उससे शयन  भी भजन बन जाता है । भगवान के आने में  न देर है, न अंधेर है, बस अक्ल का फेर है । भगवान हर पल,  हर जगह हमारे साथ ही रहते हैं । संसार को भगवान ने बनाया है और सब कुछ स्वयं भगवान ही बने हैं ---

हरिरेव जगत् जगदेव हरि: .......

तीनों लोक भगवान का ही रूप है। परमात्मा सर्वत्र व्याप्त हैं । वे संसार के अंदर भी हैं और संसार के बाहर भी हैं । चतु:श्लोकी भागवत में श्री भगवान कहते हैं ---- जब सृष्टि नहीं थी तब भी मैं था । आज भी हूं और जब सृष्टि नहीं रहेगी तब भी मैं रहूंगा ।


सौ बरस पहले हम ठाकुर के ही साथ थे । सौ वर्ष बाद भी हम ठाकुर के साथ ही रहेंगे । भगवान कहते हैं ---- हमारा कभी अभाव नहीं होता है । हम सब में विद्यमान हैं । भगवान की संपूर्ण सृष्टि अत्यंत विचित्र है । जैसे किसी एक आम के वृक्ष में  ही  अरबों  मंजरियाँ उत्पन्न होती हैं । उनमें से कुछ ही फल का आकार ले पाती हैं । एक बीज में अनंत वृक्ष उत्पन्न करने की क्षमता है । भगवान की सृष्टि रचना अति विचित्र है ----

केशव कहि न जाय का कहिये । देखत तव रचना विचित्र विधि समुझि मनहि मन रहिये ।।

 भगवान केशव साधारण चित्रकार नहीं, विचित्रकार हैं । विदुरजी का चरित्र पावन है। दुर्योधन ने विदुर जी का अपमान किया तो विदुरजी कहते हैं कि दुर्योधन ने मेरा अपमान नहीं किया बल्कि दुर्योधन के अंदर बैठे हुए गोविंद ने मुझे सावधान किया। ऐसी दृष्टि है विदुर जी की । भागवत महापुराण में विदुर- उद्धव संवाद अति सुंदर है। भगवान श्री कृष्ण ने परमधाम पधारने से पहले विदुर जी को याद करते हुए कहा था कि मैं विदुर को कुछ दे नहीं सका । व्रजमें विदुर जी और उद्धवजी का जहां मिलन हुआ था उसे आज ज्ञान गुदड़ी नाम से जाना जाता है  विदुर जी के ही सत्संग से धृतराष्ट्र और गांधारी की भी सद्गति हुई थी।

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